जनपथ और जीविका

जनपथ और जीविका

जनपथ का मतलब है- लोगों के लिए बना रास्ता। ये राजपथ नहीं। लेकिन जनपथ पर क्या लोगों को चलने, फिरने, कमाने, घूमने, बेचने के लिए प्रताड़ित होना पड़ेगा?

दिल्ली शहर के जनपथ इलाके में पर कई औरतें रेहड़ी-पटरी का काम करके अपनी आजीविका कमाती है। सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी ने में उनके काम-काज और कमाई को समझने के लिए मार्च 2021 में एक अध्ययन किया। औरतों ने बताया कि प्रशासन और पुलिस अक्सर ही उनका सामान जब्त कर लेती है- यह एक आम बात है और जब्त किए गए सामान को वापस पाने के लिए उन्हें पैसे देने पड़ते हैं।

क़ानून क्या कहता है? पथ विक्रेता अधिनियम- 2014 की धारा-19 के तहत पथ विक्रेताओं के सामानों की जब्ती केवल उस स्थिति में की जा सकती है, जब विक्रेता 30 दिनों की नोटिस की अवधि खत्म होने के बाद बेदखली या स्थानांतरण के आदेशों का पालन ना करे। इसके बाद विक्रेता को स्थानीय प्राधिकरण के अफसर द्वारा विधिवत हस्ताक्षरित, जब्त किए जा रहे सामानों की रसीद दी जानी चाहिए।

हमने औरतों के साथ अपनी बातचीत में पाया कि स्थानीय अधिकारी अधिनियम का पालन नहीं करते और सामानों की अवैध जब्ती करते हैं। ना तो उन्हें कोई हटने का नोटिस दिया जाता है, और ना ही ज़ब्ती की रसीद दी जाती है। जब्ती के बाद रेहड़ी-पटरी वाली औरतों को अपना सामान वापस पाने के लिए दर-दर की ठोकर खानी पड़ती है। इससे उनका कीमती समय और पैसा बर्बाद होता है।

यूं तो पथ विक्रेता अधिनियम- 2014 की धारा 28 के तहत 2,000 रुपए के जुर्माने का ही प्रावधान है। लेकिन यह धारा स्थानीय प्राधिकरण को जुर्माने की राशि तय करने का भी अधिकार देती है। इससे मनमाने तरीके से जुर्माना लगाने और पथ विक्रेताओं के वित्तीय उत्पीड़न की गुंजाइश बनती है।

कई औरतों ने हमें बताया कि उन्हें केवल अपना सामान वापस पाने या बिना किसी अड़चन के काम करते रहने के लिए बहुत सारे पैसे देने पड़ते है। अगर वे अधिकारियों की बात नहीं मानतीं, तो उन्हें 4,000 रुपए तक का चालान भरना पड़ता है। अपनी पटरी की जगह और सामान खोने का डर रेहड़ी-पटरी वाली औरतें बिना कोई सवाल पूछे अधिकारियों को गैरवाजिब पैसे देने पर मजबूर हो जाती हैं।

इन समस्याओं के संभावित हलों में सबसे ज़रूरी है- उत्पीड़न करने वाले अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान। महिलाओं का उत्पीड़न करने पर और ज़्यादा जुर्माना लगाया जाए। यह अनुचित जब्ती, अवैध बेदखली और मनमाने तरीके से जुर्माना लगाने के मामलों को कम करने के लिहाज से एक कारगर उपाय होगा।

(अध्ययन के नतीजे साझा करने के लिए सिमरनजोत कौर का आभार )

यह लेख मूल रूप से 6 सितंबर 2021 को नवभारत टाइम्स में  प्रकाशित हुआ था| 

 

लेखक के बारे में

प्रशांत नारंग

प्रशांत नारंग एडवोकेट हैं। सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी में उनके सबसे महत्वपूर्ण योगदान में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस सुधार सिफारिशें और स्ट्रीट वेंडर कंप्लायंस इंडेक्स शामिल हैं। उन्होंने राजस्थान में स्ट्रीट वेंडर कानून के कार्यान्वयन के लिए सर्वोच्च न्यायालय से एक अनुकूल निर्णय भी प्राप्त किया। कानूनी क्षेत्र के सुधारों, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम पर लिखित जर्नल पेपर और छोटे टुकड़े होने के कारण, उनकी वर्तमान रुचि क्षेत्र कानून का शासन और भारत में व्यापार और व्यापार करने का संवैधानिक अधिकार है।

डिस्क्लेमर:

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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