केंद्र सरकार द्वारा देश में कृषि की दिशा व दशा बदलने तथा किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के...
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भारत में संघवाद के स्वरुप को लेकर अकसर बहस होती रहती है। संघवाद का मतलब एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था से है जहां केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट सीमांकन और बंटवारा किया गया है। जहां भारत में संघवाद की कुछ विशेषताएं हैं, इसमें कुछ एकात्मक गुण भी हैं। भारत में संघवाद को लेकर हमेशा से ही बहस होती रही है। नवीनतम बहस हाल में कानून का रुप लेने वाले कृषि अधिनियमों से जुड़ी है।
देश की संसद ने हाल में तीन कृषि अधिनियम पारित...

संकट काल से गुजर रही भारतीय कृषि से जुड़ी आम राय के संदर्भ में कृषि कानूनों पर स्पष्ट मत विभाजन का विश्लेषण और बयानबाजी से आगे बढ़ने के संभावित तरीके।
देश का सबसे बड़ा निजी क्षेत्र होने के बावजूद भारतीय कृषि आज की अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक विनियमित, प्रतिबंधित और निषिद्ध क्षेत्र है। इन अड़चनों के बावजूद भारतीय किसानों ने देश को खाद्यान्नों के अभाव से अधिशेष की स्थिति में पहुंचा कर एक चमत्कार ही किया है। लेकिन इसे हासिल करने के...

इस स्तम्भ के एक पाठक ने प्रश्न किया कि ‘यदि कृषि बाजार का उदारीकरण किसानों के लिए इतना ही अच्छा विचार है, तो किसान आखिर इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?’ तो स्पष्ट कर दूं कि किसानों का एक छोटा और अल्पसंख्यक तबका ही इसका विरोध कर रहा है। यदि भारत के किसानों की कुल संख्या के बहुसंख्यक यानी 25 करोड़ से अधिक की संख्या में किसान इसका विरोध कर रहें होते तो पूरा देश ठहर गया होता। लेकिन उस पाठक के प्रश्न का जवाब गॉर्डन ट्युलॉक द्वारा 1975 में प्रस्तुत शोध पत्र ‘द ट्रांज़िशनल गेन्स ट्रैप’ में प्रकाशित...

एक सभ्य समाज के सुचारु संचालन में कुछ नियमों और कानूनों का होना अवश्यम्भावी है। देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार इन नियमों और कानूनों का निर्धारण होता है। कुछ कानून अलिखित होते हैं तो कुछ लिखित। समय समय पर नए कानूनों को लागू किया जाता है तो पुराने कानूनों का समापन भी किया जाता है। कहावत है कि यदि रुका हुआ पानी और अप्रासंगिक कानून लंबे समय तक पड़े रहें तो बीमारियों और परेशानियों का सबब बन जाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर की सरकारें समय समय पर पुराने कानूनों को या तो समाप्त कर देती हैं या...

संकट काल से गुजर रही भारतीय कृषि से जुड़ी आम राय के संदर्भ में कृषि कानूनों पर स्पष्ट मत विभाजन का विश्लेषण और बयानबाजी से आगे बढ़ने के संभावित तरीके।
देश का सबसे बड़ा निजी क्षेत्र होने के बावजूद भारतीय कृषि आज की अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक विनियमित, प्रतिबंधित और निषिद्ध क्षेत्र है। इन अड़चनों के बावजूद भारतीय किसानों ने देश को खाद्यान्नों के अभाव से अधिशेष की स्थिति में पहुंचा कर एक चमत्कार ही किया है। लेकिन...

गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा ने किसानों के आंदोलन को उसके उद्देश्य से भटका दिया है। साथ ही यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या यह पूरे देश के किसानों का आंदोलन है, क्योंकि दिल्ली की सीमाओं पर बैठे प्रदर्शनकारी किसान ज़्यादातर दो राज्यों पंजाब और हरियाणा के ही हैं।
किसान कृषि कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप देने की मांग कर रहे हैं। जबकि सच्चाई ये है कि एमएसपी कभी भी किसी कृषि कानून का हिस्सा नहीं रहा है...
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“बाजार की असफलता” शब्दावली का ज्यादातर इस्तेमाल राजनेता, पत्रकार, विश्वविद्यालय और अर्थशास्त्र के उच्च श्रेणी के छात्र और शिक्षक करते हैं। हालांकि जो लोग इस शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं, प्रायः उन्हें इस बात की बिल्कुल समझ नहीं होती है कि सरकार के पास इस संकट को दूर करने की...