गांधी जी ग्राम स्वराज के प्रवल समर्थक थे। उनका मानना था कि स्वतंत्र गांधी भारत की राजनैतिक व्यवस्था की नींव ग्रामीण गणतंत्र पर आधारित होनी चाहिए। हालांकि उनके समकालीन कई अन्य विचारक इस अवधारणा को गांधी जी की प्राचीन भारतीय गांव के प्रति रुमानियत या एक ऐसी काल्पनिक छवि के रूप में देखते थे जिसे उन्होंने भारतीयों में उच्च नैतिक जीवन के प्रति मार्गदर्शन करने के लिए गढ़ा था। भारत के इतिहास को देखने पर ज्ञात होता है कि स्वशासित गांव वास्तव में अस्तित्व में थे। उनका राजनैतिक संगठन अद्वितीय था और उनकी प्रकृति लोकतांत्रिक थी। हां, उनके तौरतरीके अलग-अलग अवश्य थे। इस संदर्भ में उपलब्ध ऐतिहासिक अभिलेखों की कमी के कारण इस वात का ठीकठीक आकलन करना कठिन है कि भारत में ग्राम्य शासन की यह लोकतांत्रिक व्यवस्था कितनी प्रचलित थी। किंतु अनुमान लगाया जा सकता है कि इस महाद्वीप के अधिकांश लोगों को इस प्रणाली की जानकारी अवश्य होगी। भारत में उच्च स्तर की विशेषज्ञता वाली वस्तुओं का उत्पादन होता था और इसके भीतरी और साथ ही साथ वाहरी दुनिया के साथ गहरे व्यापारिक नेटवर्क थे। संचार के इन माध्यमों के द्वारा शासन की इस प्रणाली की सूचना भी अवश्य प्रसारित हुई होगी। जो भी हो, इन ग्रामीण गणतंत्रों का अस्तित्व में होना यह बताता है कि यह गांधी की महज रुमानियत या कल्पनाशीलता नहीं थी।