एरर 404: जस्टिस डिनाइड: नई दिल्ली के सड़क विक्रेताओं की संघर्ष की कहानी

Error 404: Justice Denied: The story of the struggle of New Delhi's street vendors

यह कहानी है दिल्ली शहर की, जहां की सड़कों  पर हज़ारों-लाखों लोगों की आँखों  में न जाने कितने तरह के सपने पलते हैं। । इस कहानी के मुख्य पात्र हैं अली, जो कि एक 40 वर्षीय फल विक्रेता हैं।

अली की उम्मीदें उसके फलों  की रेहड़ी में छुपी होती हैं। वह हर दिन अपने फलों की रेहड़ी को बड़े चाव से सजाता है। लेकिन वह कभी नगर निगम और कभी पुलिस अधिकारियों के कारण भयग्रस्त रहता है, जो सभी विक्रेताओं को शहरी समस्याओं की जड़ समझते हैं और इनके ऊपर मनमाने जुर्माने का बोझ लादने  में जरा भी नहीं हिचकिचाते है।

अली की दैनिक दिनचर्या उसके समर्पण की गवाही है। फिर भी, एक दिन यह स्थिरता तब बाधित हो जाती है जब उस पर नगर निगम के अधिकारियों द्वारा एक छोटी सी चूक के लिए उसपर 4000 रुपये का जुर्माना लगा दिया जाता है। यह जुर्माना एक छोटे फल विक्रेता के लिए काफी बड़ी राशि होती है। यह जुर्माना न केवल अली की आर्थिक स्थिति को झकझोर देता  है बल्कि उसकी बेटी के वकील बनने के सपने को  भी सन्देहास्पद बना देता है। अब सवाल यह है कि क्या यह जुरमाना सही है?

ऐसी घटनाओं का भावनात्मक और आर्थिक प्रभाव बहुत गहरा होता है। अनेक बार, ऐसे मामलों में विक्रेता अपने अधिकारों और सुरक्षा की मांग करने में असमर्थ होते हैं। इससे विक्रेता कमजोर महसूस करते हैं और समाज में उनकी स्थिति दयनीय होती है। आख़िर एक विक्रेता करे तो क्या करें? अली की कहानी अनोखी नहीं है बल्कि दिल्ली और देश के हजारों सड़क विक्रेताओं की कहानी को दर्शाती है। 11 नवंबर 2021 को एक प्रसिद्ध समाचार पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे विक्रेताओं की संख्या लगभग 450,000 आंकी गई है (जिनमें से केवल 12,000 विक्रेता 2016 तक पंजीकृत थे)। ये विक्रेता शहर की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं। कानून के अनुसार, केवल 2.5% आबादी वेंडिंग के लिए पात्र है, और दिल्ली की जनसंख्या के आधार पर लगभग 500,000 विक्रेता वेंडिंग पात्र हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि दिल्ली में 2700 अपंजीकृत बाजार हैं, इन बाज़ारों में काम करनेवाले हजारों विक्रेताओं को प्रतिदिन इस तरह की समस्यायों से गुजारना पड़ता है।

स्थानीय अधिकारियों से उत्पीड़न, जिसमें रिश्वत, सामान की जब्ती और यहां तक कि शारीरिक हिंसा भी शामिल है, अधिकांश स्ट्रीट वेंडर्स के लिए एक कठोर वास्तविकता है।उनकी रक्षा के इरादे से बने  स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम 2014 के बावजूद, इसके अधूरे और अपर्याप्त कार्यान्वयन से उत्पीड़न के कुछ और तरीके निकल आये हैं। बहुत से लोग अपने अधिकारों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं सेअनजान हैं जो इस अधिनियम के उद्देश्य को ही हरा देता है। विक्रेताओं की संख्या को नियंत्रित करने के लिए सर्वेक्षण करने की विफलता,  इस तरह के मुद्दों को बढ़ाती है जिससे प्रशासन और स्ट्रीट वेंडर्स के बीच हमेशा संघर्ष की स्थिति बनी रहती है ।

यह स्पष्ट है कि सामंजस्यपूर्ण भविष्य का मार्ग एक संतुलित दृष्टिकोण में निहित है। इसमें नगर निगम के अधिकारियों की कठिनाइयों के साथ-साथ विक्रेताओं के संघर्षों को पहचानना शामिल है। स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम का प्रभावी कार्यान्वयन, विक्रेताओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने और सभी हितधारकों के बीच सहानुभूति को बढ़ावा देने  जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाना प्रभावशाली हो सकता हैं।

Error 404: Justice Denied Poster

फिल्म "एरर 404: जस्टिस डिनाइड" मात्र अली की कहानी नहीं है, यह उसके जैसे   हजारों - लाखों स्ट्रीट वेंडर्स की कहानी कहती है | मनमाना जुर्माना उत्पीड़न का एक बहुत ही सामान्य तरीका है। एक्ट में कूड़ा फैलाने  का जुर्माना  रु. 4000/- तो कहीं नहीं लिखा हुआ है, फिर वास्तविक जुर्माने की राशि है क्या? ये अधिकारी मनचाहा जुर्माना कैसे लगा सकते है। ये आप भी सोचिये क्योंकि जानना ज़रूरी है।

सड़क विक्रेता अधिनियम के बारे में सही तरीके से प्रचार-प्रसार कर इन  विक्रेताओं को इनके अधिकारों के बारे में  जागरूक करने की जरुरत है। अपने अधिकारों के बारे में जानकर न केवल वो समृद्धि की ओर एक मजबूत कदम बढ़ा सकते हैं बल्कि इससे उनके आत्मविस्वास को भी बल मिलेगा और वे गलत कार्यों का विरोध कर सकते है।

इतना कुछ झेलकर हमारे ये नायक हमारी जिंदगी को आसान बनाते हैं और हम भी उन नगर निगम और पुलिस अधिकरियों की तरह उन्हें एक समस्या की तरह देखते हैं। अगली बार जब आप किसी स्ट्रीट वेंडर्स को देखेंगे तो उम्मीद करते हैं कि आपका दृष्टिकोण कुछ अलग  होगा।

फिल्म "एरर 404: जस्टिस डिनाइड" देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

https://youtu.be/n4i6jWrlUJ0

 

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ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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