स्वनिधि ऋण मिल भी जाए तो उसका करें क्या!

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दो दिनों पहले भारत ने अनलॉकडाउन 3.0 में प्रवेश किया। केंद्र सरकार द्वारा नाइट कर्फ्यू को समाप्त कर दिया गया है। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी देर तक खुलने की अनुमति दे दी गई है। जिम, योगा सेंटर्स को भी कुछ निर्देशों के साथ खोलने की तैयारी कर ली गई है। तैयारी सिनेमाघरों और मॉल्स को खोलने की भी चल रही है। रेल और विमान सेवा भी सीमित संख्या में शुरु कर दी गई है। सरकार द्वारा दिशा निर्देश में सामाजिक दूरी बनाए रखना, आरोग्य सेतु ऐप का उपयोग करना, मास्क का उपयोग करना और नियमित रूप से हाथों को साफ करने को पूर्व की भांति जारी रखा गया है। 

यदि आपने ध्यान दिया हो तो आप जान पाएंगे कि ये सभी दिशा निर्देश विभिन्न व्यावसायिक उद्यमों के लिए है, मगर स्ट्रीट वेंडर्स यानी पटरी विक्रेताओं के लिए नहीं हैं। रेहड़ी पटरी विक्रेताओं की संख्या देश भर में एक करोड़ से अधिक है। उन सभी राज्यों में जहां सभी प्रकार के व्यवसाय करने और दुकानों को खोलने की अनुमति है, अधिकांश में रेहड़ी पटरी वालों को काम करने की अनुमति नहीं है। पुलिस अधिकारियों और प्रशासन का तर्क है कि स़़ड़क विक्रेताओं को व्यवसाय करने की अनुमति से संबंधित उनके पास कोई दिशा निर्देश नहीं है और ऐसे में वे उन्हें फेरी लगाने नहीं दे सकते है। सोचने वाली बात यह भी है कि यदि रेहड़ी पटरी वालों के लिए कोई दिशा निर्देश नहीं है इसका मतलब यह कैसे हो जाता है कि पटरी व्यवसायियों को काम करने की अनुमति नहीं है!

हालांकि देर से ही सही दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने रेहड़ी पटरी व्यवसायियों को व्यापार करने की अनुमति देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने साप्ताहिक बाजारों को भी लगने की अनुमति प्रदान की है। लेकिन अन्य किसी राज्य के द्वारा ऐसी किसी पहल की घोषणा अब तक नहीं की गई है। 

उधर, केंद्र सरकार द्वारा रेहड़ी पटरी व्यवसायियों के समक्ष उत्पन्न समस्या के मद्देनजर एक सामाजिक कल्याण योजना 'स्वनिधि' की शुरुआत की गई है। यह व्यवस्था देश को आर्थिक संकट की स्थिति से उबारने के उद्देश्य से 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा का ही एक हिस्सा है। इस योजना के तहत 10,000 रुपये तक की पूंजी ऋण पटरी व्यवसायियों को उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

हालांकि एक सबसे बड़ी चुनौती वास्तविक लाभार्थियों की पहचान करना और योजना का लाभ उन तक पहुंचाना भी है। प्रश्न यह है कि कैसे सुनिश्चित किया जाए कि जो लोग वेंडर नहीं है, कहीं वो इसमें शामिल ना हो जाए और जो वेंडर है, कहीं वो छूट ना जाए। देश की संसद ने रेहड़ी पटरी व्यवसायियों के हितों की रक्षा करने के लिए वर्ष 2014 में स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट पास किया था। इस कानून के तहत देशभर के वेंडर्स की गिनती और पहचान कर उन्हें कानून के तहत लाना और संरक्षण प्रदान करना था। दुर्भाग्य से, आज तक, हमारे पास देश भर के सभी मौजूदा पथ विक्रेताओं की सूची नहीं है। थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी की हालिया रिपोर्ट में पाया गया है कि देश की संसद द्वारा स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट पास किये जाने के 6 वर्ष बीत जाने के बावजूद, किसी भी राज्य ने अपने सभी जिलों में सड़क विक्रेताओं का सर्वेक्षण पूरा नहीं किया है।

रेहड़ी पटरी व्यवसाय का मतलब ही है कि विक्रेताओं की संख्या और पहचान कभी स्थिर नहीं होती है। कुछ पथ विक्रेता नेताओं के अनुसार, पिछले महीने में करीब 1 लाख दिहाड़ी मज़दूरों और कारखानों के श्रमिकों ने दिल्ली में स्ट्रीट वेंडिंग के कार्य की ओर रुख किया है। स्वनिधि योजना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि क्रेडिट सुविधा केवल उन विक्रेताओं के लिए उपलब्ध है जो 24 मार्च 2020 के पहले से वेंडिंग कर रहे हैं।

सरकार को ये ध्यान में रखना होगा कि स्ट्रीट वेडिंग एक कम लागत वाला उद्यम है जो शहरी गरीबों को त्वरित स्वरोजगार का अवसर प्रदान करता है। स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के अनुसार, शहरी आबादी के कम से कम 2.5% तक के सभी मौजूदा विक्रेताओं को वेंडिंग ज़ोन में लाइसेंस दिया जाना चाहिए। अतः सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि  दिल्ली में नए वेंडरों को भी इस स्कीम में लाभ दिया जाना चाहिए।

अंत में, भले ही कई स्ट्रीट वेंडरो को ऋण मिल भी जाए, तो भी यह स्पष्ट नहीं है कि अगर पुलिस अधिकारी उनको परेशान करना जारी रखते हैं, तो ऐसे में वे वेंडर अपने ऋण को कैसे चुकाएंगे। अगर पुलिस उन्हें काम ही नहीं करने देगी, तो वे ऋण लेकर करेंगे क्या?

सड़क विक्रेता भी उद्यमी हैं जो एक ईमानदार और सम्मान जनक जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। यह समय राज्य सरकारों के लिए ऐसी परिस्थितियां निर्मित करने का है, जो सड़क विक्रेताओं के लिए अनुकूल हो। विक्रेता उत्पीड़न को रोकने के लिए पुलिस और नगरपालिका के अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए जाएं और उन्हें अपने काम पर लौटने दिया जाए।

- एडवोकेट प्रशांत नारंग (लेखक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी के सदस्य हैं)

फोटो साभारः नेशनल हेराल्ड

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ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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