भारत में ई-कचरे की समस्या को हल करने के लिए सरकार क्या कर सकती है
प्रधान मंत्री ने 'मेक इन इंडिया' और 'डिजिटल इंडिया' जैसी योजनाओं के माध्यम से मुख्य आर्थिक मुद्दों पर राष्ट्रीय भावना को समझने में कामयाबी हासिल की है। लेकिन अब इन योजनाओं का देश में ई-कचरे के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव को भी सरकार को अवश्य स्वीकार करना चाहिए और भारत में तेजी से बढ़ते ई-कचरे की समस्या को रोकने के लिए शीघ्रता से कार्य करना चाहिए।
प्रदूषण को रोकने के लिए लागू की गई पिछली नीतियां अनधिकृत पुनर्चक्रण कर्ताओं (रीसायकलर्स) के कारण असफल रहीं क्योंकि वे जहरीले अपशिष्टों का समुचित समाधान नहीं करते हैं। हम वर्तमा न ई-कचरा प्रबंधन मॉडल में तीन संशोधनों का प्र स्ताव रखते हैं जो उपभोक्ताओं को अपना ई-कचरा उत्पादकों को वापस करने के लिए प्रोत्साहित करेगा, अनधिकृत पुनर्चक्रण कर्ताओं के द्वारा होने वाले रिसाव को कम करेगा और सरकार को ई-कचरे के लेनदेन को अधिक कुशलता पूर्वक ट्रैक करने में मदद करेगा।
जहरीले अपशिष्टों के समुचित समाधान को सुनिश्चित कैसे किया जाता है?
भारत में ई-कचरे के होने वाले पुनर्चक्रण की कुल मात्रा में से 90 प्रतिशत का पुनर्चक्रण अनौपचारिक तरीके से किया जाता है। अनधिकृत पुनर्चक्रणकर्ता फायदेमंद धातुओं जैसे कि सोना, तांबा और एल्यूमीनियम को तो निकाल लेते हैं लेकिन जहरीले तत्वों जैसे कि सीसा (लीड) और पारे (मरकरी) को कूड़े में फेंक देते हैं। अध्ययन बताते हैं कि दिल्ली के लोनी, मंडोली और कृष्णा विहार इलाके की जमीनी मिट्टी भारी धातुओं के अपमिश्रण से बुरी तरह प्रदूषित हो गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन इलाकों में ई-कचरे को खुले में फेंक दिया जाता है। यमुना नदी की भयावह स्थिति से सभी वाकिफ हैं और ई-कचरे की बहुलता वाले इलाकों जैसे कि मुरादाबाद और सीलमपुर में हवा की गुणवत्ता प्रदूषण के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई है।
तो फिर, जहरीले अपशिष्टों के समुचित समाधान को सुनिश्चित कैसे किया जाए?
ई-कचरा प्रबंधन नियम (द ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स) 2016 ने उत्पादकों की जिम्मेदारियों के विस्तार (एक्सटेंडेड प्रॉड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी) मॉडल के माध्यम से ई-कचरे के बहाव को अनधिकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं की ओर जाने से रोकने और खतरनाक अपशिष्टों के सुरक्षित समाधान के प्रति आश्वस्त करने का प्रयास किया।
इसके तहत, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स (उपकरणों) के उत्पादकों को यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की जीवन अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें अधिकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं के पास भेजा जाए।
लेकिन वर्ष 2018 में टॉक्सिक लिंक द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स (ईईई) के कुल बड़े उत्पादकों में 53 प्रतिशत उत्पादकों की ईपीआर अनुपालन की रैकिंग ‘औसत से खराब’ है। दरअसल, भारत में अनधिकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं से संबंधित हमारे शोध में पता चला है कि वर्ष 2 016 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) के तहत पंजीकृत 178 पुनर्चक्रणकर्ताओं का प्रदर्शन या तो क्षमता से कम है या वे घाटे में चल रहे हैं।
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
Comments
टॉक्सिक लिंक द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स (ईईई) के कुल बड़े उत्पादकों में 53 प्रतिशत उत्पादकों की ईपीआर अनुपालन की रैकिंग ‘औसत से खराब’ है।
Email
- Reply
Permalink