बिहार के ज़मींदार और भूमिहीन किसान

भारत भर में कृषि परिवारों के औसत जोत आकार में लगातार गिरावट आई है। सन्न 1970 में, एक औसत कृषि प्रधान परिवार के पास 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि थी; सन्न 1990 के दशक तक यह गिरकर 1.4 हेक्टेयर हो गयी। सन 2019 में यह 0.876 हेक्टेयर थी। किसान अपनी ज़मीन- का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं, इस पर कई तरह की बंदिशें हैं। भारत भर में राज्य सरकारें भूमि के आकार को सीमित करती हैं, किरायेदारी को प्रतिबंधित करती हैं और भूमि उपयोग को सीमित करती हैं। बिहार में, सबसे उपजाऊ भूमि के लिए भूमि जोत का अधिकतम आकार 6.070 हेक्टेयर तय है। यह एक बड़ी समस्या है, क्योंकि ट्रैक्टर जैसे मशीनी उपकरणों का उपयोग बड़ी ज़मीनों पर सबसे अच्छा रहता है। बिहार में औसत भूमि जोत का आकार 0.224 हेक्टेयर है, जो बहुत कम है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए जोत बड़ी होनी चाहिए। छोटे जोत का मशीनीकरण हो नहीं सकता, सो उसकी उत्पादकता बहुत कम रहती है। बिहार में कानून कुछ श्रेणियों के लोगों को छोड़कर, पट्टे पर कृषि जमीन देने पर रोक लगाता है। केवल विकलांग जमींदार, विधवाएं, अविवाहित और तलाकशुदा महिलाएं, और सशस्त्र बलों के लोग ही अपनी जमीन को पट्टे पर दे सकते हैं। इसका मतलब है कि जो कोई शहर में नौकरी खोजने के लिए खेती छोड़ना चाहता है, वह अपनी ज़मीन पट्टे पर नहीं दे पाएंगे । बिहार में औपचारिक पट्टे पर दी गयी कृषि भूमि कुल कृषि भूमि का केवल 0.02% हिस्सा है। हालांकि, घरेलू सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 15.50% भूमि पट्टे पर दी गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये सभी पट्टे अनौपचारिक हैं। अनौपचारिक पट्टे किराएदारों और जमींदारों दोनों के लिए मुश्किलें पैदा करते हैं। जमींदार लंबी अवधि के पट्टे नहीं दे सकते, वे अपनी जमीन खो सकते हैं, और उन्हें नियमित रूप से नए किरायेदारों की तलाश करनी होगी। किरायेदारों के लिए पट्टेदारी सुनिश्चित नहीं और ना ही उन्हें औपचारिक ऋण मिल सकता है। ऐसे में क्या उपाय है? सरकार को चाहिए कि पट्टेदारी को औपचारिक रूप से अनुमति दे, लीज मार्केट की अनुमति देने से ये समस्याएं ठीक हो जाएंगी और लंबी पट्टों को प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे कृषि भूमि में निवेश बढ़ेगा । खेती तभी लाभदायक हो सकती है जब इसे व्यवसाय की तरह संचालित करने की अनुमति दी जाए। किसानों को अपनी जमीन खरीदने, बेचने और पट्टे पर देने की अनुमति दी जानी चाहिए जैसे कोई अन्य व्यवसाय अपनी संपत्ति बेच सकता है। इस स्वतंत्रता के बिना खेती लाभकारी नहीं रहेगी।

लेखक के बारे में

अर्जुन कृष्णन
अर्जुन कृष्णन ने अशोका विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन और वारविक विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की है। सीसीएस में शामिल होने से पहले, उन्होंने कैटो इंस्टिट्यूट और इंस्टिट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक अफेयर्स के साथ इंटर्नशिप की। स्वतंत्रता के आर्थिक और सामाजिक आदर्श उनके लिए बहुत महत्व रखते हैं। उन्हें यात्रा करना, किताबें पढ़ना और पॉडकास्ट सुनना पसंद है।
डिस्क्लेमर:

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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