03 मार्च: विश्व वन्यजीव दिवस

3 मार्च का दिन पृथ्वी पर मौजूद वन्य जीवों और वनस्पतियों को समर्पित है। वो हमारे जीवन और विकास के लिए कितने जरूरी है इससे लोगों को अवगत और जागरूक करने के लिए हर साल 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है। जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने जीवनयापन के योग्य बनाती है लेकिन समस्या है कि लगातार बढ़ता प्रदूषण रूपी राक्षस वातावरण पर इतना खतरनाक प्रभाव डाल रहा है कि जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। भारत में इस समय 900 से भी ज्यादा दुर्लभ प्रजातियां खतरे में बताई जा रही हैं। यही नहीं, विश्व धरोहर को गंवाने वाले देशों की लिस्ट में दुनियाभर में भारत का चीन के बाद सांतवा स्थान है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने घोषित किया विश्व वन्यजीव दिवस, ऐसे हुई शुरुआत:

जानवरों और पेड़-पौधों की ऐसे दुर्दशा को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को 68वें सत्र में 03 मार्च के दिन को 'विश्व वन्यजीव दिवस' के रूप में अपनाए जाने की घोषणा की। 3 मार्च को विलुप्तप्राय वन्यजीव और वनस्पति के व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को स्वीकृत किया गया था। वन्य जीवों को विलुप्त होने से रोकने हेतु पहली बार साल 1872 में जंगली हाथी संरक्षण अधिनियम (वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट) पारित हुआ था।

विश्व वन्यजीव दिवस की थीम:

विश्व वन्यजीव दिवस के माध्यम से हर साल अलग-अलग थीम के माध्यम से लोगों में जागरुकता फैलाई जाती है। यह थीम लुप्त हो रहे जीवों और प्राकृतिक वनस्पतियों के संरक्षण से संबंधित होती है। इसे थाईलैंड की ओर से विश्व के वन्यजीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मनाने के लिए प्रस्तावित किया गया था।

विश्व वन्यजीव दिवस 2022 की थीम है- पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना

साल 2021 में इसकी थीम ” वन और आजीविका : लोग और ग्रह को बनाये रखना है। ( “Forest and livelihoods sustaining people and planet”) रखी गई।

साल 2020 में इसकी थीम पृथ्वी पर जीवन कायम रखना ” (Sustaining all life on earth) रखी गई।

साल 2019 में पानी के नीचे जीवन: लोगों और ग्रह के लिए” (Life below water: for people and planet) थीम रखी गई थी।

विश्व वन्यजीव दिवस का इतिहास:

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को 68वें सत्र में 03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस घोषित किया था। तीन मार्च को विलुप्तप्राय वन्यजीव और वनस्पति के व्यापार पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को स्वीकृत किया गया था। वन्य जीवों को विलुप्त होने से रोकने हेतु सर्वप्रथम साल 1872 में जंगली हाथी संरक्षण अधिनियम (वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट) पारित हुआ था।

साल 2018 में बड़ी बिल्लियां शिकारियों के खतरे में” (Big cats – predators under threat) रखी गई।

साल 2017 में युवा आवाज़ सुनो” (Listen to the young voices) रखी गई।

साल 2016 में वन्यजीवों का भविष्य हमारे हाथ में है”, एक उप-थीम हाथियों का भविष्य हमारे हाथों में है” (The future of wildlife is in our hands”, with a sub-theme “The future of elephants is in our hands) रखी गई।

साल 2015 में वन्यजीव अपराध के बारे में अब गंभीर होने का समय है” (It’s time to get serious about wildlife crime) थीम रखी गई थी।

भारत में बसाया जाएगा 70 साल से विलुप्त हो चुका चीता:

आज जब हम विश्व वन्यजीव दिवस मना रहे है हमारे लिए एक उम्मीद भरी खबर है। भारत में 1952 से विलुप्त हो चुके चीते को नामीबिया की मदद से दोबारा बसाया जा रहा है। मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय अभयारण्य में अफ्रीकी देश नामीबिया से चीतों को लाकर बसाने की तैयारी है। मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय अभयारण्य में बसाने की योजना के सिलसिले में नामीबिया का दौरा करने वाले भारतीय दल के एक अधिकारी ने सोमवार को कहा कि नामीबिया के अधिकारियों के साथ चर्चा फलदायी रही और चीतों को लाने के तौर-तरीकों पर काम किया जा रहा है.

भारत सरकार और मध्य प्रदेश वन विभाग के अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल चीतों के स्थानांतरण, परिवहन आदि मुद्दों पर चर्चा करने के लिए यहां से 17 फरवरी को नामीबिया के लिए रवाना हुआ था. इस मामले में चर्चा कर यह दल हाल ही में स्वदेश लौटा है.

वन्यजीव के सामने चुनौतियां:

10 लाख प्रजातियां खतरे में:
पशुओं और पौधों की 10 लाख से ज्यादा प्रजातियां खत्म होने की कगार पर हैं। इस पर नजर रखने वाली संस्था IPBES के मुताबिक, इंसानों के इतिहास में ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं बनी है।

1970 के बाद दो-तिहाई घट गए जानवर:
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, 1970 और 2016 के बीच जानवरों की संख्या 68% तक घट गई है। यानी 1970 के मुकाबले आज धरती पर जानवर दो-तिहाई कम हैं।

ताजे पानी में रहने वाले जानवरों की प्रजातियों में गिरावट सबसे तेज:
WWF
की ही रिपोर्ट का दावा है कि ताजे पानी में रहने वाले जानवरों की नस्लों में सबसे तेजी से कमी हुई है। 1970 से 2018 के बीच औसतन 84% की गिरावट आई है। 2016 के मुकाबले दो साल में यह आंकड़ा 1% रह गया।

खेती में चली गई जंगलों की ज्यादातर जमीन:
IPBES
के मुताबिक, दक्षिण-पूर्वी एशिया और लैटिन अमेरिका में 1980 से 2000 के बीच 10 करोड़ हैक्टेयर जंगल खत्म हो गए।

पक्षियों की प्रजातियों के लिए बढ़ा खतरा:
IPBES
की रिपोर्ट कहती है कि घरेलू पक्षियों की संख्या में 2016 से 3.5% तक की कमी आई है। लुप्त हो रहे 23% पक्षियों पर क्लाइमेट चेंज का असर दिख रहा है।

भारत में वन्य जीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें कानूनी संरक्षण प्रयाद किया गया है। जिन्हें विभिन्न अनुसूचियों में विभाजित किया गया है।

अधिनियम के तहत अनुसूचियाँ:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत विभिन्न पौधों और जानवरों की सुरक्षा स्थिति को निम्नलिखित छह अनुसूचियों के तहत विभाजित किया गया है:

अनुसूची I

इसमें उन लुप्तप्राय प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिन्हें सर्वाधिक सुरक्षा की आवश्यकता है। इसके तहत शामिल प्रजातियों को अवैध शिकार, हत्या, व्यापार आदि से सुरक्षा प्रदान की जाती है।

इस अनुसूची के तहत कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को सबसे कठोर दंड दिया जाता है।

इस अनुसूची के तहत शामिल प्रजातियों का पूरे भारत में शिकार करने पर प्रतिबंध है, सिवाय ऐसी स्थिति के जब वे मानव जीवन के लिये खतरा हों अथवा वे ऐसी बीमारी से पीड़ित हों, जिससे ठीक होना संभव नहीं है।

अनुसूची I के तहत निम्नलिखित जानवर शामिल हैं:

ब्लैक बक, बंगाल टाइगर, धूमिल तेंदुआ , हिम तेंदुआ, दलदल हिरण, हिमालयी भालू, एशियाई चीता, कश्मीरी हिरण, लायन-टेल्ड मैकाक, कस्तूरी मृग, गैंडा, ब्रो-एंटलर्ड डियर, चिंकारा, कैप्ड लंगूर, गोल्डन लंगूर, हूलॉक गिब्बन

अनुसूची II

इस सूची के अंतर्गत आने वाले जानवरों को भी उनके संरक्षण के लिये उच्च सुरक्षा प्रदान की जाती है, जिसमें उनके व्यापार पर प्रतिबंध आदि शामिल हैं।

इस अनुसूची के तहत शामिल प्रजातियों का भी पूरे भारत में शिकार करने पर प्रतिबंध है, सिवाय ऐसी स्थिति के जब वे मानव जीवन के लिये खतरा हों अथवा वे ऐसी बीमारी से पीड़ित हों, जिससे ठीक होना संभव नहीं है।

अनुसूची II के तहत सूचीबद्ध जानवरों में शामिल हैं:

असमिया मैकाक, पिग टेल्ड मैकाक, स्टंप टेल्ड मैकाक, बंगाल हनुमान लंगूर, हिमालयन ब्लैक बियर, हिमालयन सैलामैंडर, सियार, उड़ने वाली गिलहरी, विशाल गिलहरी, स्पर्म व्हेल, भारतीय कोबरा, किंग कोबरा

अनुसूची III और IV

जानवरों की वे प्रजातियाँ, जो संकटग्रस्त नहीं हैं उन्हें अनुसूची III और IV के अंतर्गत शामिल किया गया है।

इसमें प्रतिबंधित शिकार वाली संरक्षित प्रजातियाँ शामिल हैं, लेकिन किसी भी उल्लंघन के लिये दंड पहली दो अनुसूचियों की तुलना में कम है।

अनुसूची III के तहत संरक्षित जानवरों में शामिल हैं:

चित्तीदार हिरण, नीली भेड़, लकड़बग्घा, नीलगाय, सांभर (हिरण),स्पंज

अनुसूची IV के तहत संरक्षित जानवरों में शामिल हैं:

राजहंस, खरगोश, फाल्कन, किंगफिशर, नीलकण्ठ पक्षी, हॉर्सशू क्रैब

अनुसूची V

इस अनुसूची में ऐसे जानवर शामिल हैं जिन्हें कृमि’ (छोटे जंगली जानवर जो बीमारी फैलाते हैं और पौधों तथा भोजन को नष्ट करते हैं) माना जाता है। इन जानवरों का शिकार किया जा सकता है।

इसमें जंगली जानवरों की केवल चार प्रजातियाँ शामिल हैं:

कौवे, फ्रूट्स बैट्स, मूषक, चूहा

अनुसूची VI

यह निर्दिष्ट पौधों की खेती को विनियमित करता है और उनके कब्ज़े, बिक्री और परिवहन को प्रतिबंधित करता है।

निर्दिष्ट पौधों की खेती और व्यापार दोनों ही सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति से ही किया जा सकता है।

अनुसूची VI के तहत संरक्षित पौधों में शामिल हैं:

साइकस बेडडोमि, ब्लू वांडा (ब्लू ऑर्किड), रेड वांडा (रेड ऑर्किड), कुथु (सौसुरिया लप्पा), स्लीपर ऑर्किड, पिचर प्लांट (नेपेंथेस खासियाना)

(सोर्स : आंकड़े दृष्टि आईएएस एकेडमी)

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