विकास, सुरक्षा और संवाद से चलेगा शासन!

आइए आपको इस लेख में बताते हैं क्या रहे त्रिपुरा मेघालय और नागालैंड में आय चुनाव परिणामों के विनिंग फैक्टर

हाल ही में आए भारत के नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र में स्थित तीन राज्य, त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय  एसेंबली इलेक्शन के रिजल्ट्स। जिसमें एक बार फिर विकास का मुद्दा जोर शोर से हावी रहा। वैसे तो सीट्स और आबादी के लिहाज से इन राज्यों को आप छोटा कह सकते हैं लेकिन सीमावर्ती, नेचुरल रिसोर्स और कल्चरल हेरिटेज होने की दृष्टि से ये भारत के लिए सामरिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इस बार त्रिपुरा और नागालैंड में जहां केंद्र की सत्ता में स्थापित भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला वहीं मेघालय में भाजपा एनपीपी गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ है।

वोटिंग में नंबर 1 नॉर्थ ईस्ट:
लोकतंत्र के महापर्व में यहां के लोगों ने जमकर हिस्सा लिया। आपको जानकर हैरानी हो सकती है एक ओर जहां उत्तर भारत को सेंटर ऑफ पावर कहा जाता है वहीं वोटिंग परसेंटेज के मामले में नॉर्थईस्ट "सेंटर ऑफ वोटिंग पावर" है। जहां देश के अन्य हिस्सों वोटिंग परसेंटेज बा मुश्किल 70% पहुंच पाता है वहीं नॉर्थ ईस्ट में ये 90% को छूता है। अभी संपन्न हुए चुनावों में भी त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के मतदाताओं ने जमकर वोटिंग की।
त्रिपुरा में इस बार 86.10% वोटिंग हुई, जो पिछली बार से 4 % कम है, 2018 में यहां 90% वोटिंग हुई थी। मेघालय में इस बार 85.27% वोटिंग हुई जो पिछली बार से 10% ज्यादा रही। नागालैंड में इस बार 85.90% वोटिंग हुई जो पिछली बार से 10% ज्यादा रही।

विकास का मुद्दा फिर रहा हावी:
इस बार चुनाव में विकास का मुद्दा हावी रहा। हिंदी हॉट लैंड से कोसों दूर नॉर्थईस्ट को लेकर भेदभाव के आरोप लंबे अरसे से केंद्र सरकार पर लगते आए हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय दलों ने इस बार वहां विकास के मुद्दे को जोर शोर से आगे रखा। क्षेत्रीय मुद्दे, अस्मिता और पहचान के साथ साथ देश के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का नारा खूब चला। ऐसा भी नहीं कि विकास हुआ है सिर्फ नारो तक सीमित रह गया। धरातल पर भी इसके प्रमाण मिलते है। अब रेल त्रिपुरा तक पहुंच चुकी है। पांच अन्य परियोजनाएं लाइन में हैं। इसके साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई वर्ष 2014-15 में 10,905 किलोमीटर से बढ़कर वर्तमान समय में 13,710 किलोमीटर हो चुकी है।

परिवहन व दूरसंचार संपर्क का विकास किसी क्रांति से कम नहीं है। 2014 से पहले सिर्फ असम ही रेलवे से जुड़ा था। अब अगरतला और ईटानगर को भी जोड़ दिया गया है तथा अन्य राजधानियों को भी जल्द ही रेल-सुविधा प्राप्त होगी। राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से पूर्वोत्तर में निर्बाध सड़क संपर्क सुनिश्चित करने के लिए सरकार 1.6 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रही है। हवाई संपर्क के संदर्भ में, पांच पूर्वोत्तर राज्यों- मिजोरम, मेघालय, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड– से आजादी के बाद पहली बार हवाई उड़ानें भरीं गयीं।
2014 में इस क्षेत्र में सिर्फ 9 हवाई अड्डे थे, अब इस क्षेत्र में हवाई अड्डों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 17 हो गई है, जिनमें ईटानगर का डोनी पोलो नवीनतम हवाई अड्डा है। भारत सरकार ने 2023 के अंत तक क्षेत्र में पूर्ण दूरसंचार संपर्क की सुविधा प्रदान करने के लिए 500 दिनों का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिससे दूरसंचार संपर्क में भी व्यापक विस्तार देखा जा रहा है।

चीन के साथ तकरार:
पूर्वोत्तर के लोगों के बीच भी चीन का डर लगातार बना रहता है। यहां के वोटरों में परसेप्शन है की केंद्र में सत्ताधारी राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी को जीताकर  चीन से उनकी रक्षा हो सकेगी। दरअसल भारतीय सीमाओं पर भारत सरकार की रक्षा संबंधी तमाम योजनाओं ने यहां के लोगों में यह भरोसा जगाया है कि भारत सरकार चीन से टक्कर लेने में पीछे नहीं हटेगी। भारत ने चीन से सटे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सड़क, पुल और टनल निर्माण के कार्य को टॉप गियर में डाल दिया है। इस बारे में दशकों पुरानी सोच को दरकिनार करते हुए पूर्वी लद्दाख से लेकर सिक्कम तक और पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश स्थित एलएसी के पास रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण पूरे इलाके में हर मौसम में काम आने वाले सड़क निर्माण का काम शुरू हो गया है।

नॉर्थ ईस्ट को प्राथिमिकता:
हाल की उत्तर-पूर्व परिषद के स्वर्ण जयंती समारोह में माननीय प्रधानमंत्री ने कहा था कि "पूर्वोत्तर के कार्य तेजी से करें और सबसे पहले करें" (एक्ट फास्ट फॉर नॉर्थ ईस्ट, एक्ट फर्स्ट फॉर नॉर्थ ईस्ट) ही पूर्वोत्तर क्षेत्र की आगे बढ़ने की यात्रा का मूलमंत्र है। अब पीछे मुड़कर नहीं देखना है। बहानों पर कोई विचार नहीं किया जाएगा, क्योंकि वे दिन अब बीत चुके हैं। पूर्वोत्तर के विकास के लिए कदम मजबूती से उठाए जा चुके हैं!

केंद्रीय बजट में नॉर्थ ईस्ट को बूस्ट:
पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनर) के लिए 2023-24 के लिए बजट में 5,892.00 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2022-23 के आरई आवंटन (2,755.05 करोड़ रुपये) से 114 प्रतिशत अधिक है। यह इरादे के अनुरूप कार्य का निर्विवाद और अकाट्य प्रमाण है। उल्लेखनीय है कि इनमें से पूंजीगत परिसंपत्ति के निर्माण के लिए समर्पित पूंजीगत व्यय के रूप में 4,093.25 करोड़ रुपये (92 प्रतिशत) का प्रावधान किया गया है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास की कमी को दूर करने के लिए केंद्रीय बजट 2022-23 में नई योजना, पीएम-डेवआईएनई की घोषणा की गई थी। मोदी सरकार ने इसके साथ ही सभी मंत्रालयो को पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए विशेष सहायता निरंतर देने पर विशेष जोर दिया। केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को उत्तर पूर्व क्षेत्र को लाभान्वित करने के लिए अपने आवंटन से सकल बजट सहायता (जीबीएस) का 10 प्रतिशत खर्च करना आवश्यक है।

प्रधानमंत्री का नॉर्थ ईस्ट कनेक्ट:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 9 साल के कार्यकाल के दौरान पूर्वोत्तर राज्यों (North East States) पर विशेष ध्यान दिया है। सत्ता संभालने के बाद करीब 50 बार से अधिक पूर्वोत्तर भारत का दौरा करने वाले देश के एकमात्र प्रधानमंत्री बन गए। जाहिर है कि आजादी के बाद से इस तरह से फोकस्ड होकर किसी नेता ने इस एरिया के बारे में बात नहीं की। पूर्वोत्तर के लोग शेष भारत से खुद को अलग ही मानते थे। पीएम मोदी ने उनकी इस भावना को समझा और लगातार दौरा, इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर जोर देकर उन्हें यह महसूस कराया कि आप भी भारत के अभिन्न अंग हैं।

हेमंत फैक्टर:
उत्तर पूर्व में बीजेपी को मजबूती से स्थापित करने में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा की बड़ी भूमिका रही है। त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में भाजपा की जीत का बड़ा फैक्टर असम के सीएम हेमंत भी रहे। 20 साल तक कांग्रेस में रहने के बाद भाजपा में आए हेमंत वो ट्रुप का इक्का साबित हुए है जिसने पूरे नॉर्थ ईस्ट में कमल खिला दिया है। चाहे लोकल लेवल पर गठबंधन हो या उम्मीदवारों का चुनाव हेमंत ही सारथी रहे। लंबे अरसे तक कांग्रेस में रहने से उन्हें उसकी खामियों, नेताओं की नाराज़गी के बारे में पता रहता है जिससे वो भुनाते है। आपको बता दें इन राज्यों में 2014 से पहले कांग्रेस का ही बोलबाला था और तब हेमंत कांग्रेस में ही थे।

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