संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट
"महामारी काल में पूरी दुनिया में गरीबी की परतों को कुछ इस तरह से खोल दिया है टिकिया विकासशील देश और क्या विकसित देश समूचे ब्रह्मांड मैं भूख, लाचारी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और रोजगार का सूखा खुल कर बाहर आ गया है। दुनियाभर में करीब 330 करोड़ लोग आ सकते है गरीबी की चपेट में" - रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई ताजा रिपोर्ट के अनुसार जो आंकड़े सामने आए हैं वह स्तब्ध कर देने वाले हैं। कोरोना महामारी के साथ शुरू हुआ आर्थिक संकट का वैश्विक दौर यूक्रेन रूस के युद्ध के साथ और भी गहराता हुआ नजर आ रहा है।
क्या गरीबी के गहराते संकट में कुछ निजात मिलेगी या फिर 2020-21 में जो सिलसिला शुरू हुआ था वो 2022 में भी जारी रहेगा? वर्तमान की स्थितियों को देखें तो इस बात की संभावना बहुत कम नजर आ रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने बजाई खतरे की घंटी:
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट “2022 फाइनेंसिंग फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट रिपोर्ट: ब्रिजिंग द फाइनेंस डिवाइड” की माने तो कोरोना के कारण उपजे वैश्विक संकट के चलते 2021 में करीब 7.7 करोड़ लोग गरीबी की गंभीर रेखा के नीचे पहुंच गए थे। इतना ही नहीं साल के अंत तक दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाएं दोबारा 2019 जितनी सबल नहीं हो पाएंगी।
विकासशील देश बन रहे विकास मुक्त:
रिपोर्ट का अनुमान है कि 2023 के अंत तक भी 5 में से एक विकासशील देश की प्रति व्यक्ति जीडीपी वापस 2019 के स्तर पर नहीं पहुंच पाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक कई विकासशील देशों के लिए कर्ज के बढ़ते बोझ और उसके ब्याज ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। ऐसे में ये देश विकास खर्च में भी जबरन कटौती करने के लिए मजबूर है। इतना ही नहीं इस बढ़ती समस्या ने भविष्य में इस तरह की मुसीबतों का सामना करने की उनकी क्षमता को भी प्रभावित किया है।
कर्ज की मार से बेहाल विकासशील देश:
कर्ज पर ब्याज की एवज में 14% राजस्व खर्च कर रहे हैं कमजोर देश। जहां एक तरफ संपन्न देश बहुत ही कम ब्याज दरों पर उधार ली गई भारी धनराशि की मदद से महामारी का सामना करने और उससे उबरने में सक्षम थे वहीं दूसरी तरफ सबसे पिछड़े देशों ने अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए थे। जिसने उन्हें सतत विकास के मुद्दों पर निवेश करने से रोक दिया था। रिपोर्ट के अनुसार औसतन सबसे कमजोर विकासशील देश कर्ज पर लगने वाले ब्याज की एवज में अपना करीब 14% राजस्व खर्च कर रहे हैं जोकि विकसित देशों की तुलना में लगभग 4 गुना ज्यादा है। गौरतलब है कि विकसित देशों के लिए यह आंकड़ा साढ़े तीन फीसदी है।
विश्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट ‘इंटरनेशनल डेब्ट स्टेटिस्टिक्स 2022’ से पता चला है कि 2020 में पहले ही गरीबी की मार झेल रहे देशों पर 12% की वृद्धि के साथ कर्ज का बोझ बढ़कर रिकॉर्ड 65 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया था। वहीं यदि निम्न और मध्यम आय वाले देशों की बात करें तो उनपर कुल विदेशी कर्ज इस दौरान 5.3% की वृद्धि के साथ बढ़कर 654.9 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है।
यूक्रेन रूस युद्ध ने बढ़ाई मुसीबत:
देखा जाए तो महामारी के चलते कई विकासशील देशों को अपने शिक्षा, बुनियादी ढांचे और अन्य पूंजीगत व्यय के बजट में भारी कटौती करने को मजबूर होना पड़ा है। ऐसे में यूक्रेन में चलते युद्ध इन चुनौतियों को बढ़ा देगा, साथ ही उनके लिए नई समस्याएं पैदा कर देगा। देखा जाए तो महामारी के चलते कई विकासशील देशों को अपने शिक्षा, बुनियादी ढांचे और अन्य पूंजीगत व्यय के बजट में भारी कटौती करने को मजबूर होना पड़ा है। ऐसे में यूक्रेन में चलते युद्ध इन चुनौतियों को बढ़ा देगा, साथ ही उनके लिए नई समस्याएं पैदा कर देगा।
ऐसे में संयुक्त राष्ट्र को डर है कि यूक्रेन में जारी संकट के चलते कई देशों में आर्थिक सुधार की रफ्तार धीमी पड़ सकती है। हालांकि विकसित देशों में महामारी के बाद बढ़ते निवेश के चलते आर्थिक विकास की दर दोबारा पटरी पर लौटने लगी है।
निवेश में पिछड़ते विकासशील देश:
रिपोर्ट से पता चला है कि 2021 के दौरान दुनिया में गरीबी, सामाजिक सुरक्षा और सतत विकास के क्षेत्र में निवेश पर जो कुछ प्रगति हुई है। वो विकसित और कुछ गिने चुने बड़े विकासशील देशों में हुई कार्रवाई से प्रेरित है. इसमें कोविड-19 पर खर्च किए 1,293.6 लाख करोड़ रुपए भी शामिल हैं। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2020 में आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई है जो बढ़कर अपने उच्चतम स्तर तक 12.3 लाख करोड़ पर पहुंच गई है। 13 देशों ने इस दौरान ओडीए में कटौती की है। हालांकि देखा जाए तो इसके बावजूद विकासशील देशों की विशाल जरूरतों के लिए यह राशि पर्याप्त नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव लियू जेनमिन का कहना है कि "विकसित देशों ने पिछले दो वर्षों में यह साबित कर दिया है कि कैसे सही निवेश की मदद से लाखों लोगों को गरीबी के भंवर से बाहर निकाला जा सकता है। उनके अनुसार सशक्त और स्वच्छ इंफ्रास्ट्रक्चर, सामाजिक सुरक्षा या सार्वजनिक सेवाओं की मदद से ऐसा कर पाना संभव है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के विकास की आधारशिला इसी प्रगति पर निर्मित की जानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विकासशील देश भी इसी स्तर पर निवेश कर सकें। साथ ही असमानता को कम किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए की वो शाश्वत ऊर्जा बदलावों को अपना सकें"
“फर्स्ट क्राइसिस, देन कैटास्ट्रोफे” ने भी बढ़ाई चिंता:
ऑक्सफेम द्वारा जारी रिपोर्ट “फर्स्ट क्राइसिस, देन कैटास्ट्रोफे” में भी दुनिया में बढ़ती गरीबी को लेकर कुछ ऐसे ही खुलासे किए थे। इसके अनुसार साल के अंत तक दुनिया भर में करीब 86 करोड़ लोग 145 रुपए (1.9 डॉलर) प्रति दिन से कम में गुजारा करने को मजबूर होंगें। वहीं यदि उनकी आय का हिसाब 420 रुपए (5.5 डॉलर) प्रतिदिन के आधार पर लगाएं तो 2022 के अंत तक दुनिया के करीब 330 करोड़ लोग गरीबी की मार झेल रहे होंगें।
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
Comments