स्कूलों को खोलने का फैसला अभिभावकों और स्कूलों पर छोड़ना बेहतर

 

कोरोना महामारी की विभिषिका झेल चुके तमाम देशों में स्कूल और कॉलेज खुल चुके हैं लेकिन भारत में लगभग डेढ़ साल से बंद पड़े स्कूलों को खोलने को लेकर अब तक कोई सर्वमान्य सहमति नहीं बन सकी है। देश में कोरोना की संभावित तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने की आशंका स्कूलों को खोलने का निर्णय लेने की राह में हिचक का सबसे बड़ा कारण है। एक तरफ हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों ने स्कूलों को खोलने का फैसला लिया है वहीं दिल्ली सहित अन्य राज्य अभी भी कोई अंतिम निर्णय नहीं ले सके हैं। हालांकि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईएमसीआर), ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) व इसके जैसे अन्य संस्थानों ने भी सुरक्षा उपायों के साथ स्कूलों के खुलने पर सहमति जताई है। उधर, देश भर के स्कूल संगठन पहले से ही स्कूलों को खोले जाने की मांग को लेकर अभियान चला रहे हैं। 

स्कूलों को खोलने से संबंधित निर्णय निर्धारण की प्रक्रिया में अभिभावकों का किरदार अहम है। ये अभिभावक ही हैं जिन्हें यह फैसला लेना है कि वो अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं या नहीं। इसलिए यह आवश्यक है कि अभिभावकों के बीच व्यापक स्तर पर रायशुमारी करायी जाए और उसी के आधार पर फैसला लिया जाय। दिल्ली सरकार ने इसी प्रकार का फैसला लेते हुए अभिभावकों से सुझाव मांगने का काम शुरू किया है। हालांकि अभिभावकों से सुझाव ईमेल के माध्यम से मंगाया जा रहा है जिससे तमाम ऐसे अभिभावकों के इस प्रक्रिया से बाहर हो जाने की आशंका है जो टेक सेवी नहीं हैं। इसमें सरकारी स्कूलों व बजट स्कूलों में पढ़ने वाले प्रथम पीढ़ी के छात्रों के अभिभावकों की संख्या सबसे अधिक होगी। यह सबको पता है कि किसी प्रकार का फीडबैक दर्ज कराने अथवा सर्वे में आगे आकर शामिल ऐसे लोगों की संख्या अधिकतम होती है जो उस विषय के समर्थन अथवा विरोध को लेकर स्पष्ट राय रखते हैं।

माना जा रहा है कि सरकार द्वारा कराये जा रहे सर्वे में जहां अधिकांश अभिभावक स्कूलों को खोलने के पक्ष में राय दर्ज करा रहे हैं वहीं अभिभावक संघ द्वारा कराये जा रहे है सर्वे में अभिभावकों के इसके खिलाफ मतदान करने की बात कही जा रही है। यह ध्यान देने योग्य है कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण की दर 0.5% के आस पास है और सभी बाजार, पार्क, मॉल, बैंक्वेट हॉल खोल दिये गए हैं। संभव है कि सरकारें रायशुमारी के दौरान प्राप्त सुझावों में से बहुमत के आधार पर फैसला लेते हुए स्कूलों को खोलने अथवा न खोलने का फैसला लेंगी। यह उन अभिभावकों के प्रति ज्यादती होगी जिनके विचार अल्पमत में होंगे।

एक तरीका यह हो सकता है कि स्कूलों के खुलने से संबंधित फैसला स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह से स्कूल स्तर पर स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों के द्वारा आपसी सहमति से लिया जाए। स्वास्थ्य विशेषज्ञ स्कूल विशेष व आसपास के इलाके में संक्रमण की स्थिति से संबंधित रिपोर्ट जारी कर सकते हैं। रिपोर्ट के बच्चों के लिए सुरक्षित होने की स्थिति में अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का फैसला ले सकते हैं। सरकार की भूमिका बच्चों की सुरक्षा के लिए स्कूल स्तर पर गाइडलाइंस जारी करने और उसके अनुपालन को सुनिश्चित कराने की हो सकती है। 

स्कूल भी ब्लेंडेड टीचिंग का फैसला ले सकते हैं। ब्लेंडेट टीचिंग का तात्पर्य कक्षा में बच्चों की कुल संख्या को टुकड़ों में बांट कर अलग अलग दिन क्लास में बुलाने और ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से शिक्षा प्रदान करना है। बजट स्कूल संगठनों की अखिल भारतीय संस्था नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा का भी कहना है कि वे स्कूलों में ब्लेंडेड टीचिंग के लिये तैयार हैं और इसके लिए आवश्यक तैयारियां की जा चुकी है। उनका कहना है कि वे एक कक्षा को तीन टुकड़ों में बांटकर शिक्षा प्रदान करने के लिए तैयार हैं।    

 

लेखक के बारे में

अविनाश चंद्र

अविनाश चंद्र वरिष्ठ पत्रकार हैं और सेंटर फॉर सिविल सोसायटी के सीनियर फेलो हैं। वे पब्लिक पॉलिसी मामलों के विशेषज्ञ हैं और उदारवादी वेब पोर्टल आजादी.मी के संयोजक हैं।

डिस्क्लेमर:

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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