क्या रिसर्च पार्क भारत के एस टी आई भविष्य के लिए आशाजनक हैं?
एक आधुनिक रिसर्च पार्क की परिकल्पना एक ऐसे स्थान के रूप में की गई है जहां विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न हितधारक नवाचार के लिए एकत्र होते हैं। भारत के रिसर्च पार्कों में विज्ञानं, प्रौद्योगिकी, और नवाचार (जिसको अंग्रेजी में "साइंस, टेक्नोलॉजी, एंड इनोवेशन" या एस टी आई- STI कहा जाता है) के योगदान से, शैक्षणिक उन्नति, आर्थिक उपयोगिता, और सामाजिक प्रभाव का संगम देखने को मिलता है। रिसर्च पार्क एक ऐसी जगह है जहां औद्योगिक 'रिसर्च एंड डेवलपमेंट' इकाइयां, आधुनिक प्रयोगशालाएँ, और 'स्टार्टअप इनक्यूबेटर' का प्रयोग करके सतत नवाचार प्राप्त किया जा सकता है।
ऐतिहासिक रूप से ऐसा कहा गया है कि रिसर्च पार्क प्रदेशों की तकनीकी उन्नति और आर्थिक
प्रगति में प्रभावोत्पादक हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में आलोचकों के अनुसार यह पार्क इन आशाओं पर खरे नहीं उतर पाए हैं । पिछले एक दशक में विश्वविद्यालय-आधारित रिसर्च पार्क क्षेत्र में भारत का प्रवेश इन सभी विचारों को देश के एस टी आई भविष्य के लिए महत्वपूर्ण बनाता है। मेरा मानना है कि दूसरे देशों में रिसर्च पार्क मॉडल के पक्ष-विपक्षों को समझना, और इस मॉडल के माध्यम से मापने योग्य, यथार्थवादी परिणामों की ओर जाना, भारत के पक्ष में है।
आई आई टी मद्रास रिसर्च पार्क मॉडल
2010 में स्थापित, आई आई टी मद्रास रिसर्च पार्क (आई आई टी एम आर पी- IITMRP) में आज 70 से अधिक अनुसंधान और विकास कंपनियां हैं, और यहाँ 200 से अधिक स्टार्टअप (startup) को इन्क्यूबेट (incubate) किया गया है । पार्क में आर एंड डी इकाइयों का संचालन करने वाली कुछ प्रसिद्ध कंपनियों में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बी एच ई एल या भेल), टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, सेंट गोबेन और टाइटन इंडस्ट्रीज शामिल हैं। पार्क को अपने पहले निधिकरण का एक बड़ा हिस्सा एम एच आर डी से ऋण के रूप में दिया गया।इसमें सरकार द्वारा सहायता अनुदान के रूप में और 137 करोड़ रुपये पुनः निवेश किये गए। आई आई टी एम आर पी की प्रभावकारिता से जुड़ा हुआ ज़्यादा डेटा सार्वजनिक रूप में उपलब्ध नहीं है। इसके बिना यह तय करना मुश्किल है कि इस पार्क में किये गए निवेश का आर्थिक और उत्पादक परिणाम योग्य है या नहीं।
आठ अन्य संस्थानों— आई आई टी खड़गपुर, आई आई टी बॉम्बे, आई आई टी गांधीनगर, आई आई टी दिल्ली, आई आई टी गुवाहाटी, आई आई टी कानपुर, आई आई टी हैदराबाद और आई आई एस सी बेंगलुरु में आई आई टी एम आर पी मॉडल के अनुसार रिसर्च पार्क बनाने की योजना पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा बनाई जा रही है। आई आई टी खड़गपुर और आई आई टी बॉम्बे के पार्कों के लिए 100 करोड़ रुपयों का बजट रखा गया है, जबकि आई आई टी गांधीनगर रिसर्च पार्क के लिए 90 करोड़ रुपये, और शेष पार्कों के लिए 75 करोड़ रुपये, आवंटित किए गए हैं। इन पार्कों में निवेश का उच्च स्तर देखते हुए भविष्य में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के माध्यम से इस निवेश पर रिटर्न प्रदान करने की उनकी क्षमता एक प्रमुख संकेतक होगी, जिस पर उनकी सफलता टिकी हुई है।
वैश्विक रिसर्च पार्कों से कुछ परिप्रेक्ष्य
रिसर्च पार्क का मॉडल एस टी आई की दुनिया में कोई नया अविष्कार नहीं है। पिछले कुछ दशकों में इसे अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों द्वारा अपनाया गया है । इनमें से कई पार्क तकनीकी उन्नति का प्रयोग करते हुए वाणिज्यिक सफलता की ओर काम करते हैं।
अमरीका के उत्तरी कैरोलिना में स्थित रिसर्च ट्राएंगल पार्क (आर टी पी— RTP), विकास के इस रूप का एक प्रसिद्ध उदाहरण है। यह 1959 में उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय, चैपल हिल; ड्यूक विश्वविद्यालय, डरहम; और उत्तरी कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी, रैले के बीच एक त्रिकोण के बीच में बनाया गया था। पार्क चलाने के लिए जिम्मेदार ‘रिसर्च ट्राएंगल रीजनल पार्टनरशिप’, एक आर्थिक विकास संगठन है जो सेंट्रल नॉर्थ कैरोलिना में 12 काउंटियों को एक साथ लाती है, और रिसर्च को सरकार, व्यापार और आर्थिक विकास संगठनों से जोड़ती है। आज आर टी पी 7,000 एकड़ में फैला है, इस पार्क में 250 से अधिक कंपनियों के ऑफिस हैं, और यह 50,000 से अधिक लोगों को रोजगार देता है। यह स्टार्टअप (startup) कंपनियों के लिए एक प्रभावशाली स्थल होने का दवा भी करता है— पिछले दशक में आर टी पी में वेंचर कैपिटल (venture capital) सौदों का संयुक्त मूल्य $ 5.9 बिलियन था।
हालांकि डाटा का प्रयोग करके आर टी पी की आर्थिक सफलता को आई आई टी एम आर पी से बेहतर मापा जा सकता है, आर्थिक विकास में रिसर्च पार्कों के योगदान के दृष्टिकोण से आर टी पी एक अनोखा उदाहरण माना जाता है। पिछले दो दशकों में आलोचकों ने सरकारी और प्राइवेट निवेश की बड़ी मात्रा को देखते हुए रिसर्च पार्क और आर्थिक प्रगति के बीच के सह-संबंध पर कई प्रश्न उठाए हैं।
रिसर्च पार्क मॉडल की चुनौतियों का सामना
भारत में और विश्वविद्यालय-आधारित रिसर्च पार्क स्थापित करने का कदम ऐसे समय पर आया है जब दुनिया के कई हिस्सों में उनकी उपयोगिता की पुन: जांच की जा रही है। मेरे लेख का यह अनुभाग भारत के एस टी आई परिदृश्य के तीन पहलुओं को देखता है, और पूछता है कि अधिकतम उपयोगिता के हिसाब से रिसर्च पार्कों को कैसे बनाने और चलने की ज़रूरत है।
पहला, यहाँ आर एंड डी फंडिंग से जुड़े हुए कुछ सवाल उठाना ज़रूरी है। अनुसंधान और विकास पर भारत का सकल व्यय (जी ई आर डी- GERD)— 0.7% — हमारे सकल घरेलू उत्पाद (जी दी पी- GDP) का एक बहुत छोटा भाग है। अन्य उन्नत और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के औसत दो प्रतिशत की तुलना में, यह आंकड़ा संतोषजनक नहीं है। जबकि देश के पूरे आर एंड दी खर्चे में से 56% सरकार द्वारा उठाया जाता है, एक बार फिर यह आंकडा अमरीका, चीन, जापान, जर्मनी, और कनाडा जैसे देशों से 20% कम है। इन आँकड़ों को देखते हुए प्रतीत होता है कि टी आई अनुसंधान और विकास में प्रतिस्पर्धी खिलाड़ी बनने के लिए यह ज़रूरी है कि भारत इस क्षेत्र में अपना सरकारी निवेश बढ़ने की ओर काम करे। यहाँ सार्वजनिक संसाधनों को पारदर्शी, लक्ष्य-उन्मुख तरीकों से निवेश करने की आवश्यकता पर विचार करना ज़रूरी है। किसी भी परियोजना के लिए करदाताओं से प्राप्त किये गए संसाधनों का निवेश सही ठहराने के लिए, सरकार को ध्यान से इन सांसदों के उपयोग के लिए विस्तृत योजनाएँ बनाने, और उन पर प्राप्त होने वाले मुनाफे का आकलन करने की ज़रूरत है। यह देखना अभी भी बाकी है कि रिसर्च पार्कों में इन संसाधनों का कितने प्रभावी ढंग से संचालन किया जा रहा है।
ढूंढने पर ऐसा मालूम होता है कि भारत में एस टी आई अनुसंधान में प्राथमिकता रखने वाले क्षेत्रों के विषय में कोई सहमति नहीं है। इस विषय पर विभिन्न वेबसाइट (websites), पोर्टल (portals), और पॉलिसी दस्तावेज प्राथमिकता वाले 'स्टेम' (STEM) उपक्षेत्रों की काफी भिन्न सूचियां पेश करते हैं, जिनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लेकर पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग से लेकर स्टेम सेल बायोलॉजी तक शामिल हैं। भारत के कार्यात्मक रिसर्च पार्क, जैसे कि आई आई टी एम आर पी, कई कंपनियों की अनुसंधान एवं विकास सुविधाएं और कई किस्म के स्टार्टअप के लिए इन्क्यूबेटर अपने विशेषाधिकार में शामिल करते हैं। इसे समझने का एक तरीका यह है कि इसे एक मार्किट फर्स्ट (market first) दृष्टिकोण से देखा जाए— सरकारी आदेश के हिसाब से अनुसंधान प्राथमिकताओं को निर्धारित करने के विरोध में, इन पार्कों की ऐसे रूप में कल्पना की जा सकती है जो प्राइवेट सेक्टर (private sector) की ओर प्रवृत्त है, जिसका मार्गदर्शन बाजार प्रवृत्तियाँ और वाणिज्यिक व्यवहार्यता करती हैं। दूसरी ओर, सरकार की ओर से सुसंगत दिशा और मापनीय अनुसंधान लक्ष्यों की कमी भी चिंतादायी है , विशेषत: भारत की प्रारूप “साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी” (एस टी आई पी) 2020 को ध्यान में रखते हुए। स्पष्ट अनुसंधान अनिवार्यताओं के अभाव में, रिसर्च पार्कों की क्षमता व्यर्थ जाने की सम्भावना है।
रिसर्च पार्कों के रणनीतिक मूल्य पर बढ़ते डिजिटलीकरण के प्रभावों पर विचार करना भी महत्वपूर्ण है। कार्यस्थलों और आर्थिक प्रक्रियाओं के डिजिटल होने की ओर कदम COVID-19 महामारी से और भी तेज़ हो गया है। अभी तक, रिसर्च पार्कों की उपयोगिता को स्टेम (STEM) आर एंड डी प्रक्रियाओं के भिन्न हिस्सों को एक दूसरे के करीब लाने की उनकी अनूठी क्षमता के संदर्भ में परिभाषित की गई है। यदि अंतर-क्षेत्रीय सहयोग के डिजिटल तरीके आदर्श बनाने लगें, तो रिसर्च पार्क मॉडल का आकर्षण एक केंद्रीय हिस्सा खो देगा। यह विश्वविद्यालय-आधारित रिसर्च पार्कों के मॉडल का अद्यतन करने की ज़रूरत सामने लाता है।
रिसर्च पार्कों की क्षमता का मूल्यांकन
रिसर्च पार्कों की आर्थिक क्षमता पर उठी आशंकाओं को देखते हुए, मेरा सुझाव है कि यह पुनर्मूल्यांकन करना आवश्यक है कि वे सार्थक रूप से क्या हासिल कर सकते हैं। भारत का विश्वविद्यालय-आधारित वैज्ञानिक रिसर्च पार्क मॉडल को अपनाना दो प्रकार की सम्भावनाएं पूरी कर सकता है- स्टार्टअप (startup) क्षेत्र में, और सामाजिक प्रभाव के क्षेत्र में। यह दोनों पक्ष भी आर्थिक क्षमता के व्यापक दायरे में आती हैं। पर ये फिर भी इस मॉडल की सफलता को समग्र रोजगार सृजन और पूंजी वृद्धि से मापने की जगह अलग विकल्प पेश करती हैं।
स्टार्टअप इन्क्यूबेशन हब (startup incubation hub) के रूप में, यह मोदी सरकार की प्रमुख आर्थिक योजनाओं आत्मनिर्भरभारत और स्टार्टअप-इंडिया को बढ़ावा देते हैं। रिसर्च पार्कों की पुनर्कल्पनाएक ऐसे स्थल के तौर पर भी की जा सकती है जहाँ एस टी आई का प्रयोग करके सामाजिक प्रभाव लाया जा सकता है। सामाजिक भलाई के लिए प्रौद्योगिकी की क्षमता का उपयोग 21वीं सदी का एक ऐसा उद्देश्य है जो तेज़ी से महत्वपूर्ण होती जा रही है। दुनियाभर के लोग आज जलवायु परिवर्तन, गरीबी, और संरचनात्मक असमानता जैसी बड़ी चुनौतियों से निपट रहे हैं। रिसर्च पार्कों में इन चुनौतियों के लिए समाधान ढूंढना एक ऐसा उद्देश्य है जो भारत के पार्कों में हरित प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा पर हो रहे उत्साहयुक्त अनुसंधान में झलकता है। कुछ ही दिन पहले, आई आई टी एम आर पी ने सेंट एंड्रयूज (St. Andrews) विश्वविद्यालय के साथ भारत को 100% अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों पर चलाने के लक्ष्य की ओर साझेदारी घोषित की। यदि भविष्य में रिसर्च पार्क स्टेम में जेंडर (gender) समानता, प्रौद्योगिकी के द्वारा ग्रामीण विकास, या एस टी आई अनुसंधान के लिए उद्देश्य सीमांकित करने के क्षेत्रों में योगदान करने की क्षमता रखें, तो इनको बनाने के लिए सरकारी निवेश का प्रयोग उचित साबित हो सकता है।
उनके निर्माण के लिए बनाई गई योजनाओं में रिसर्च पार्क कई प्रकार के विकास की ओर चलने का वादा करते हैं। आने वाले सालों में इनकी स्थापना और कार्यपद्धति की जांच करना हर करदाता और देश के हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है, और इनकी कार्य पद्धति के बारे में जानकारी प्राप्त करना उनका हक़।
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
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