देश के 70 फीसदी कानूनों को पढ़ना-समझना आसान नहीं

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थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी (CCS) और मरकैटस सेंटर, जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी की ओर से देश के मौजूदा कानूनों का गुणात्मक विश्लेषण किया गया है। इस रिसर्च स्टडी में यह सामने आया है कि देश के मौजूदा कानूनों में से 70 फीसदी कानून ऐसे हैं, जिन्हें पढ़ना और समझना आम जनता के लिए आसान नहीं है।

संविधान निर्माता और देश के प्रथम कानून मंत्री डॉ भीमराव अम्बेडकर की जयंती के मौके पर सीसीएस के शोध विभाग ने कानूनों के गुणात्मक विश्लेषण संबंधी अपने अध्ययन और उसके निष्कर्षों को जारी किया। कानूनों के गुणात्मक विश्लेषण के इस कार्य में कुल केंद्र स्तर के 876 कानूनों का अध्ययन किया गया, जिसमें से 608 कानूनों को पढ़ने के लिहाज से (फ्लीश्ज रीडिंग ईज स्कोर के आधार पर) या तो ‘मुश्किल’, ‘काफी मुश्किल’ या ‘बेहद मुश्किल’ पाया गया। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 उन शीर्ष 10 कानूनों में शामिल है जिन्हें पढ़ना सबसे ज़्यादा मुश्किल है। कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय सबसे कम जटिल कानूनों वाला मंत्रालय है।

इस अध्ययन में राज्यों के स्कूली शिक्षा कानूनों का भी विश्लेषण किया गया। विश्लेषण में पाया गया कि स्कूली शिक्षा से संबंधित कानूनों को समझने के लिए कम से कम कॉलेज से स्नातक होने के बराबर मानसिक स्तर की समझ अत्यंत आवश्यक है।

निष्कर्ष के बाबत बताते हुए सीसीएस के एसोसिएट डायरेक्टर एड. प्रशांत नारंग ने बताया कि सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 देश के उन शीर्ष 10 कानूनों में शामिल है, जिन्हें पढ़ना सबसे ज्यादा मुश्किल है।

रिपोर्ट के मुताबिक मिजोरम के कानूनों को समझना सबसे कठिन है और इसके बाद दिल्ली और पुंडुचेरी का स्थान है। कानूनों की सरलता के हिसाब से शीर्ष तीन राज्य मणिपुर, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश हैं।

प्रशांत के मुताबिक राष्ट्रीय कानून की औसत लंबाई 9,500 शब्दों से ज्यादा है। इनकम टैक्स 1961 और कंपनी अधिनियम 2013 सबसे लंबे कानून हैं। सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम, 1956 सबसे छोटा कानून है। सबसे विशाल कानूनों वाले शीर्ष पांच मंत्रालय- कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, पोत परिवहन मंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय हैं।

आजादी के बाद से हमारे कानून और लंबे हो गए. आजादी के बाद हर कानून में औसत शब्दों की संख्या 16,264 से बढ़कर 18,537 हो गई। 1947 और 2010 के बीच साल 1993 में लंबाई के हिसाब से सबसे कम औसत वृद्धि (4,279 शब्द) दर्ज की गई।

कानूनों के गुणात्मक विश्लेषण नामक इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘जुर्माना’ और ‘कारावास’ किसी कानून में सबसे आम रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले प्रतिबंध हैं। प्रतिबंधात्मक शब्द ‘जुर्माना’ का हर कानून में औसत रूप से 4.66 बार इस्तेमाल किया गया है। वहीं ‘कारावास’ शब्द का हर कानून में औसत रूप से 4.39 बार इस्तेमाल किया गया है। व्यापारी नौवहन अधिनियम, 1958 और कंपनी अधिनियम 2013 वे दो वाणिज्यिक कानून हैं जिनमें इन दोनो शब्दों का सबसे ज्यादा दोहराव हुआ है।

दूसरे वाणिज्यिक कानून जैसे कि कानूनी माप पद्धति अधिनियम (एलएमए) 2010 में आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम संहिता अधिनियम (सीआरपीसी) 1973 की तुलना में प्रतिबंधात्मक शब्दों का ज़्यादा इस्तेमाल किया गया है। एलएमए 2010 में हर 84 शब्दों के बाद एक प्रतिबंधात्मक शब्द का इस्तेमाल किया गया है। वहीं सीआरपीसी 1973 में हर 109 शब्दों के बाद एक प्रतिबंधात्मक शब्द आता है।

अध्ययन के बारे में बताते हुए सीसीएस के एसोसिएट डायरेक्टर एड. प्रशांत नारंग ने बताया कि, भारत में जीवन जीने की सुगमता (ईज ऑफ लिविंग), व्यवसाय करने की सुगमता (ईज ऑफ बिजनेस), स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ स्कूल एजुकेशन) को मापने के लिए सूचकांक है। हमें कानूनों की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए एक सूचकांक की आवश्यकता है. मरकैटस के सहयोग से किया गया हमारा नवीनतम अध्ययन, भारत में कानून के बनने के दौरान के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा करता है।

लेखक के बारे में

मोहम्मद अनस खान
डिस्क्लेमर:

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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