दीनदयाल उपाध्याय प्रचार-प्रसार योजना

बाल श्रम एक ऐसा अभिशाप है जिससे उभरता नया भारत सबसे ज्यादा पीड़ित है। हमारे देश में ही नहीं दुनिया में बाल मजदूरी की स्थिति बेहद खराब है। अनेकों प्रयासों और नियमों- कायदे- कानून के बावजूद बाल मजदूरी सरे आम हमारे समाज का हिस्सा बन चुका है। हमारे आस पास ही कोई ना कोई बच्चा किसी ना किसी रूप में बाल मजदूरी करता दिख जाएगा। तो बड़े- बड़े कारखानों तक में चोरी छुप्पे भी बच्चों का बचपन अवैध श्रम की काल कोठरी में सजा याफता है। बच्चे चूंकि सस्ती दर पर श्रम हेतु ढकेल दिए जाते हैं।  परिवार की बेहद गरीब स्थितियों की वजह से भी बच्चों को काम में झोंक दिया जाता है।

कोविड-19 से उपजी परिस्थितियों में जबकि गरीबी और बढ़ जाने की आशंकाएं जताई जा रही हैं, तब यह सवाल भी सामने जाता है कि आने वाले वक्त में बाल मजदूरों के आंकड़ों पर इस गरीबी और बदहाली का क्या असर होने वाला है? जिन भयंकर स्थितियों को सालों की मेहतन के बाद सुधारा गया था, क्या वह परिस्थितियां फिर से वैसी ही हो जाने वाली हैं?

हर दसवां बच्चा बाल मजदूर

इंटरनेशल लेबर आर्गनाइजेशन और यूनीसेफ ने अपनी रिपोर्ट में दुनिया में बाल मजदूरी को लेकर जो आंकड़े प्रस्तुत किए है वो निश्चित रूप से हमारे समाने एक यक्ष प्रश्न खड़ा करते है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का हर दसवां बच्चा किसी किसी तरह की मजदूरी करने पर मजबूर है। यदि आंकड़ों में इसे देखें तो दुनिया में 16 करोड़ बच्चे मजदूर हैं इनमें तकरीबन 6 करोड़ लड़कियां और दस करोड़ लड़के शामिल हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2020 में बाल मजदूरी के मामलों में दुनिया में तकरीबन 84 लाख बाल मजदूरों की बढ़ोत्तरी हो गई है। कई सालों की गिरावट के बाद यह आंकड़ा एक बार फिर आश्चर्यजनक रूप से बढ़ने लगा है। इससे पहले बालमजदूरी के आंकड़े लगातार कम हो रहे थे, जोकि सुखद था। रिपोर्ट हमें चेतावनी देती है, कि आज ध्यान नहीं दिया गया तो तो कोविड-19 का यह 2022 तक दुनिया में 89 लाख बच्चों को और बालमजदूरी के जाल में फंसा देगा! यह आशंका व्यक्त की गई है कि कि 2022 तक दुनिया में बाल मजदूरों की संख्या बढ़कर 20.6 करोड़ तक हो सकती है।

भारत में 2022 तक कितने बच्‍चों पर बाल मजदूरी का फंदा?
भारत में 5 से 14 साल के बच्चों की कुल संख्या 25.96 करोड़ है. इनमें से 1.01 करोड़ बच्चे श्रम करते हैं, यानी कामगार की भूमिका में हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि 5 से 9 साल की उम्र के 25.33 लाख बच्चे काम करते हैं। 10 से 14 वर्ष की उम्र के 75.95 लाख बच्चे कामगार हैं. 1.01 करोड़ बच्चों में से 43.53 लाख बच्चे मुख्य कामगार के रूप में, 19 लाख बच्चे तीन माह के कामगार के रूप में और 38.75 लाख बच्चे 3 से 6 माह के लिए कामगार के रूप में काम करते हैं।
राज्यवार देखें तो उत्तरप्रदेश (21.76 लाख), बिहार (10.88 लाख ), राजस्थान (8.48 लाख), महाराष्ट्र (7.28 लाख) और मध्यप्रदेश (7 लाख) समेत पांच प्रमुख राज्यों में 55.41 लाख बच्चे श्रम में लगे हुए हैं।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्रचार-प्रसार योजना  से जगी भविष्य बचाने की आस!

जिस उम्र में बच्चों के हाथ में किताब होनी चाहिए उस उम्र में बच्चों से दुकानों प्रतिष्ठानों या फैक्ट्रियों में बच्चों से शारीरिक श्रम कराने पर अब सख्त कार्रवाई की जाएगी। मेरठ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्रचार-प्रसार योजना में मिला 1.20 लाख का बजट दिया गया है। जिससे पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्रचार-प्रसार योजना के तहत होर्डिंग बैनर पोस्टर और बोर्ड लगवाए जाएंगे।

छोटी उम्र में छिनता बचपना: पढाई-लिखाई की उम्र में बच्चों से काम कराना अपराध है। इसकी रोकथाम के लिए श्रम विभाग चेकिंग अभियान भी चलाता है। कार्रवाई करने का भी प्राविधान है। इसके बावजूद बालश्रम जारी है। अब जिला प्रशासन भी इस दिशा में सामाजिक जागरूकता पैदा करेगा। इसके लिए सार्वजिनक स्थानों दुकानों आदि पर बोर्ड लगवाए जाएंगे। दुकानों पर बच्चों से काम कराने वाले लोगों पर कार्रवाई कर बच्चों को पढ़ाई के लिए जागरूक किया जाएगा।

सराहनीय पहल: बाल श्रम अधिनियम के तहत 14 से 18 वर्ष के बच्चों से दुकानों, प्रतिष्ठानों में काम कराना गैरकानूनी है। मेरठ जिले में पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्रचार-प्रसार योजना के तहत होर्डिंग लगवाने के साथ नुक्कड़ नाटक, बैनर पोस्टर के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। इसके लिए 1.20 लाख रुपये का बजट मिल चुका है। आचार संहिता हटने के बाद इसका प्रयोग हो सकेगा। मेरठ जिला प्रशासन की ये पहल बेहद सराहनीय है। ऐसी ही कोशिशे पूरे प्रदेश और देश में समय की मांग है।

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