'सेव द टाइगर'

"सेव द टाइगर" अपने राष्ट्रीय पशु को बचाने के लिए भारत का प्रयास:

बाघ संरक्षण को लेकर देश में जारी तमाम प्रयासों के बीच नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के निर्देश पर राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क में बाघों की गणना का काम पूरा कर लिया गया।

टाइगर रिजर्व प्रशासन ने कैमरा ट्रैप, साइन सर्वे समेत कई अन्य तकनीक से किए अध्ययन की रिपोर्ट भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों को सौंप दी। टाइगर रिजर्व पार्क के अफसरों की मानें तो फिलहाल बाघों की संख्या बढ़ने की पूरी उम्मीद है। हालांकि, बाघों की कितनी संख्या बढ़ सकती है को बताने से इनकार कर दिया। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के निर्देश पर राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क, जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व पार्क के साथ देश में बाघों की गिनती का काम जारी है।

तकनीक के इस्तेमाल से होगा बाघों का संरक्षण:

अब संस्थान के विशेषज्ञ विशेष सॉफ्टवेयर से इस बात का आकलन कर रहे कि पार्क में बाघों की वास्तविक संख्या कितनी है। अथॉरिटी के आंकड़ों पर नजर डालें, तो साल 2014 में हुई गणना में टाइगर रिजर्व पार्क में बाघों की संख्या 340 पाई गई थी, जबकि 2018 में 442 बाघ मिले थे। ऐसे में टाइगर रिजर्व पार्क के अफसराें को उम्मीद है कि फिर उत्तराखंड में बाघों की संख्या बढ़ सकती है। राजाजी पार्क के निदेशक अखिलेश तिवारी ने बताया कि बाघों की गणना का चौथा चरण पूरा कर लिया गया है। पूरे पार्क में लगाए गए 500 से अधिक ट्रैक कैमरों की मदद से बाघों को कैमरे में कैद कर लिया गया है। कैमरे में कैद तमाम तस्वीरें और दस्तावेज वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों को सौंप दिए गए हैं।

बाघों की प्रदेश व्यापी स्थिति:

साल 2018 में कराई गई गणना में सबसे अधिक 526 बाघ मध्यप्रदेश में मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर कर्नाटक था, जहां 524 बाघों को चिह्नित किया गया था। वहीं, 442 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे स्थान पर था।

संरक्षण के बावजूद चिंता जनक स्थिति:

भारत में बाघों के संरक्षण के लिए कई स्तरों पर किए जा रहे तमाम प्रयास लेकिन विडंबना है कि बाघ संरक्षण के लिए किए जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद देश में हर साल औसतन 98 बाघ मर रहे हैं। बाघों के रहने से जंगलों की सुरक्षा होती है जिससे हमें आक्सीजन भोजन और दवाएं अनवरत मिलती रहती हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा हाल में दी गई जानकारी के मुताबिक 2021 में देश में 126 बाघों की मौत हुई है। हैरानी की बात है कि प्राकृतिक मौत से कहीं अधिक बाघों की मौत की वजह अवैध शिकार, मानव के साथ संघर्ष, सड़क और रेल दुर्घटनाएं रहीं। बाघों के अस्तित्व पर मंडराते खतरे में मानवजनित कारकों की बढ़ती भूमिका चिंतित करती है।

हमें और ज्यादा जागरूक और गतिशील होने की जरूरत है:

बाघ जनगणना रिपोर्ट-2018 के अनुसार देश में 2,967 बाघ ही शेष बचे हैं, लेकिन पिछले तीन वर्षो में क्रमश: 126, 106 और 96 बाघों की मौत हो गई। हालांकि इसमें बाघों की प्राकृतिक रूप से हुई मौत के आंकड़े भी सम्मिलित हैं, लेकिन हकीकत यह है कि वनोन्मूलन, पर्यावास विखंडन, जलवायु परिवर्तन, शिकार और जंगलों में प्रवेश करती भौतिक विकास की प्रक्रिया ने बाघों का अस्तित्व ही खतरे में डाल दिया है।

बाघों का महत्व:

वन्यजीव संरचना में बाघ एक महत्वपूर्ण जंगली जाति है। बाघों की आहार श्रृंखला और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में बड़ा योगदान है। दुनिया में अब केवल 3900 बाघ ही जीवित हैं। बाघों की घटती तादाद को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आइयूसीएन) ने अपनी लाल सूची (रेड लिस्ट) में 1969 में ही बाघ को लुप्तप्राय श्रेणी में सम्मिलित कर उसके संरक्षण के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा था। वहीं बाघों के संरक्षण में 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित पहले अंतरराष्ट्रीय बाघ सम्मेलन का विशिष्ट महत्व रहा है।

भारत में बाघ संरक्षण की शुरुआत:

देश में एक अप्रैल, 1973 को प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की गई थी। फिलहाल देश के 18 राज्यों में 53 टाइगर रिजर्व संचालित हैं। देश में बाघ को राष्ट्रीय पशु का दर्जा भी दिया गया है। वहीं 2006 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की स्थापना के बाद देश में बाघों के संरक्षण की रफ्तार में तेजी देखने को मिली है।

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ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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