नई शिक्षा नीति

नई शिक्षा नीति क्रांतिकारी कदम

नई शिक्षा नीति जमीन पर कितनी सरलता से उतरेगी यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन बदलते परिवेश में इसकी जरूरत महसूस की जा रही थी। नई शिक्षा नीति में किन बातों पर विशेष बल दिया गया है आइए जानते हैं प्रवक्ता वृजनंदन चौबे जी से।


क्या पांचवी तक की शिक्षा मातृभाषा में आवश्यक है?

छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा में चीजों को जल्दी सीखते और समझते हैं। इसीलिए शिक्षा नीति में कहा गया है कि कम से कम कक्षा पांच तक और अगर संभव हो तो कक्षा आठ और उसके बाद भी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा होगा। उसके बाद स्थानीय भाषा को अगर संभव हो तो एक अन्य भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। ये सरकारी और निजी दोनों स्कूलों द्वारा किया जाएगा। विज्ञान सहित उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें मातृभाषा या स्थानीय भाषा में उपलब्ध करवाई जाएंगी। शुरुआती शिक्षा में भी बच्चों को अलग-अलग भाषाएं पढाई जाएगी लेकिन विशेष जोर मातृभाषा पर होगा।

नई शिक्षा नीति रोजगारपरक कैसे होगी? 

नई शिक्षा नीति से बड़ा बदलाव आने वाला है। इसमें व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दिया गया है, जिससे विद्यार्थी पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होंगे। प्रत्येक विद्यार्थी को नौकरी स्वरोजगार के लिए पूर्ण प्रशिक्षण देने का भी प्रावधान है। इससे आने वाले समय में व्यापक स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित होंगे।

Early Childhood Care and Education (ECCE) क्या है?

ईसीसीई शिक्षकों के शुरुआती कैडर तैयार करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और शिक्षकों को एनसीईआरटी द्वारा विकसित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षित किया जाएगा। इन्हें 6 माह का सर्टिफिकेट कोर्स और एक साल का डिप्लोमा कराया जाएगा। ईसीसीई पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की जिम्मेदारी शिक्षा मंत्रालय की होगी। महिला और बाल विकास, स्वास्थ्य तथा जनजातीय कार्य मंत्रालय सहयोग करेंगे।

नामांकन की क्या चुनौतियां हैं?

तीन वर्ष की आयु से लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा अर्थात ग्रेड-12 तक शिक्षा नि:शुल्क एवं अनिवार्य होगी। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में नांमाकन एक बड़ी चुनौती है इसे दूर करने के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत सभी का नामांकन किया जाएगा।

बोर्ड परीक्षाओं में क्या बदलाव होंगे?

बोर्ड और प्रवेश परीक्षा सहित माध्यमिक स्कूल परीक्षाओं की वर्तमान प्रकृति के कारण कोचिंग संस्कृति पनप गई है। इनके चलते विद्यार्थी अपना कीमती समय परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग में बर्बाद कर रहे। बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाया जाएगा। उनके उच्चतर जोखिम पहलू को समाप्त करने के लिए छात्रों को स्कूल वर्ष के दौरान दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी। एक मुख्य परीक्षा और यदि आवश्यक हो तो सुधार के लिए एक और परीक्षा की अनुमति मिलेगी।

क्या नई नीति में विदेशी विश्वविद्यालय के लिए भी दरवाजे खोले गए हैं? उनका विनियमन कैसे होगा?

बेहतर परफार्मेंस वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को अन्य देशों में कैम्पस खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसी तरह दुनिया के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों को भारत में संचालन की अनुमति दी जाएगी। इसके लिए एक लीगल फ्रेमवर्क की व्यवस्था की गई है। विदेशी विश्वविद्यालयों में अर्जित किए गए क्रेडिट देश में मान्य होंगे और यदि वह उच्चतर शिक्षण संस्थान की आवश्यकताओं के अनुसार हैं तो इन्हें डिग्री प्रदान करने के लिए भी स्वीकार करने की व्यवस्था की गई है।

क्या बीए-बीएससी कोर्स भी चार साल के होंगे?

स्नातक उपाधि तीन या चार वर्ष की अवधि के होंगे, जिसमें उपयुक्त प्रमाण पत्र के साथ निकास के नए विकल्प होंगे। जैसे, एक साल पूरा करने पर सर्टिफिकेट, दो साल पूरा करने पर डिप्लोमा या तीन साल पूर्ण करने पर स्नातक की डिग्री दी जाएगी।

हायर एजूकेशन में फीस रेगुलेशन के लिए क्या व्यवस्था होगी?

संस्थानों को उनके प्रमाणन के आधार पर फीस की एक उच्चतर सीमा तय करने के लिए पारदर्शी तंत्र विकसित किया जाएगा। निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्धारित सभी फीस और शुल्क पारदर्शी रूप से बताए जाएंगे और किसी भी छात्र के नामांकन के दौरान फीस में कोई मनमानी वृद्धि नहीं होगी।

शिक्षा की गुणवत्ता कैसे बढ़ेगी?

शिक्षा पर सरकारी व्यय जीडीपी के छह फीसदी तक बढ़ाने पर सरकार विचार कर रही है। इससे केंद्र एवं राज्य सरकारें शिक्षा पर ज्यादा निवेश करेंगे, इसका सीधा असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ेगा।

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