पुण्यतिथि विशेषः पंडित हृदय नाथ कुंजरू

Hridya-Nath-Kunzru

प्रमुख भारतीय उदारवादी चिंतक हृदयनाथ कुंजरु का जन्म 1 अक्टूबर 1887 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित अयोध्या नाथ कुंजरु और माता का नाम जनकेश्वरी था। वह लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय रहे और चार दशकों तक संसद और विभिन्न परिषदों को अपनी सेवाएं दी। वर्ष 1946 से 1950 तक वह उस कांस्टिटुएंट असेम्बली ऑफ इंडिया के सदस्य भी रहे जिसने भारत का संविधान तैयार किया था। वह देश दुनिया की घटनाओं पर पैनी नजर और रूचि रखते थे। उन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स और इंडियन स्कूल्स ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की स्थापना भी की।

वर्ष 1903 में उन्होंने आगरा से मैट्रिकुलेशन किया और 1907 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बी.ए. पास किया। वर्ष 1908 में हृदयनाथ कुंजरु का विवाह हुआ किंतु दो वर्ष बाद ही 1911 में बच्चे को जन्म देने के दौरान उनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गईं। कुछ माह बाद ही उनके पुत्र की भी मौत हो गई। इस घटना ने हृदय नाथ कुंजरु के जीवन को एक नया मोड़ दे दिया। उन्होंने अपना समस्त जीवन जनता की सेवा को अर्पित कर दिया। बाद में पॉलिटिकल साइंस से बीएससी करने वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स चले गए।

पंडित हृदयनाथ कुंजरु ने अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत कांग्रेस ज्वाइन करने के साथ की लेकिन जल्द ही उन्होंने इसे छोड़ दिया और तेज बहादुर सप्रु, मदन मोहन मालवीय सहित अन्य प्रगतिशील चिंतकों के साथ नेशनल लिबरल फेडरेशन की स्थापना की। बाद में इसे लिबरल पार्टी ऑफ इंडिया बुलाया जाने लगा। 1934 में वह इसके अध्यक्ष बनें। जीवन पर्यंत वे बतौर स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव लड़े। लोकतंत्र में सरकार को असीमित शक्तियां प्रदान करने के विचार के वे खिलाफ थे और इसलिए उन्होंने उदारवादी गैर सरकारी संगठनों की तन मन से खूब सहायता की। संविधान सभा में उनके बहस आमतौर पर सरकार को दी जाने वाली असीमित शक्तियों के विरोध में और उन्हें कम करने के सुझाव वाले ही होते थे।

उन्होंने तमाम संवैधानिक और सरकारी पदों को सुशोभित किया जिनमें लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ द युनाइटेड प्रोविंसेज़ (1921-26), सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली (1936-30), द काउंसिल ऑफ स्टेट्स (1936), द प्रोविजनल पार्लियामेंट (1950-52) व राज्यसभा के सदस्य (1952-64) प्रमुख हैं।

पंडित कुंजरु कई एक्सपर्ट कमेटियों में भी शामिल रहे जिनमें रेलवे एक्सिडेंट्स कमिटी (1962), 1948 में गठित नेशनल कैडेट कॉर्प्स के लिए 1946 में बनी कमेटी, नेशनल डिफेंस अकेडमी (एनडीए) की स्थापना के लिए गठित कमेटी आदि प्रमुख है। वह राज्य पुर्नगठन आयोग (स्टेट्स रिऑर्गनाइज़ेशन कमीशन) के 1953 से 1955 तक सदस्य भी रहे। कुंजरु ने साऊथ अफ्रीका, युनाइटेड स्टेट्स, जापान और पाकिस्तान सहित तमाम देशों की यात्राएं भी की।

शिक्षा के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभाते हुए उन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स और द इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ की स्थापना की। धन की कमी से ऊबारने के लिए उन्होंने अपने संबंधों का इस्तेमाल करते हुए 6 लाख रुपए की राशि एकत्रित की और इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स के मुख्यालय सप्रु भवन का निर्माण कराया। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय व श्री राम इंस्टिट्यूट के सीनेट व एग्जिक्युटिव काउंसिल के सदस्य भी रहे। युनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) के भी वह 12 वर्षों तक सदस्य रहें और कुछ समय के लिए इसके अध्यक्ष भी बनें। चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी के भी वह पहले अध्यक्ष रहें।

उनके कार्यों और योगदानों को को देखते हुए भारत सरकार ने सन 1968 में देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला लिया लेकिन कुंजरु ने इसे अस्वीकार कर दिया। वर्ष 1987 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। 3 अप्रैल 1978 को 91 वर्ष की उम्र में आगरा में ही उनका देहावसान हो गया।

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Centre for Civil Society
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ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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