धन, धन होता है, काला या सफेद नहीं!

हमें यह समझना होगा कि धन अंततः धन होता है। यह काला और सफेद नहीं होता। धन के पास और अधिक धन पैदा करने का एक नैसर्गिक गुण भी होता है। लेकिन असल समस्या धन को काले और सफेद (कानूनी और गैरकानूनी) में विभाजित करने के साथ शुरू होती है। जैसे ही सरकार अथवा कोई सरकारी संस्था धन को काले या सफेद में वर्गीकृत करती है, धन अपना नैसर्गिक गुण अर्थात और धन पैदा करने की क्षमता समाप्त खो देता है। किसी देश की अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा नुकसान, मौजूदा धन की सहायता से और धन पैदा न कर पाने की क्षमता पहुंचाती है। आगे बढ़ने से पहले हमें गैरकानूनी अर्थात काले धन की उत्पत्ति को समझना होगा। मोटे तौर पर काले धन का मुख्य कारण सरकार द्वारा लोगों को अतिरिक्त आय अर्जित करने से रोकना और आवश्यकता से अधिक कर वसूलना है। दरअसल, आय और व्यय एक वृत्ताकार प्रक्रिया है जिसमें उत्पादक और उपभोक्ता के साथ सरकार भी शामिल होती है। जिस प्रक्रिया में सरकार को (कर ना चुकाकर) शामिल नहीं किया जाता है वह काला धन बन जाता है।

हमें यह भी समझना होगा कि अपने आय को और अधिक करना मानवीय स्वभाव है। हर कोई चाहता है कि अपनी वर्तमान आय में वह और इजाफा करे। इसके लिए एक सरकारी अध्यापक स्कूल के बाद खाली समय में ट्यूशन पढ़ाने का विचार करता है। या एक सरकारी डॉक्टर थोड़ा समय निकालकर घर पर और मरीजों को देखने की योजना बनाता है। ध्यान रहे कि यह उस प्रकार का काम नहीं है जिससे किसी का अहित हो, लेकिन ऐसी संभावनाएं होती हैं कि सरकारी कर्मचारी अपने प्राथमिक पेशे के प्रति ईमानदार नहीं रह जाएगा। इसके मद्देनजर, प्राथमिक पेशे (नौकरी) के प्रति लापरवाही बरतने से रोकने के नाम पर सरकारी कर्मियों का ऐसा करना प्रतिबंधित है और पकड़े जाने पर सजा का भी प्रावधान है। लेकिन बड़ी तादाद में सरकारी कर्मचारी न केवल ऐसा करते हैं बल्कि नौकरी के इतर अर्जित धन का चाहते हुए भी खुलासा नहीं कर पाते हैं। और इस प्रकार कर ना चुकाने के कारण वह धन काले धन में परिवर्तित हो जाता है।

हालांकि संपूर्ण कालेधन में इस प्रकार से अर्जित काले धन का हिस्सा अत्यंत कम होता है। काले धन में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी राजनेताओं द्वारा लिये गए राजनैतिक चंदे, सरकारी अधिकारियों, पुलिस आदि द्वारा ली गई रिश्वत, रियल स्टेट के क्षेत्र में होने वाला लेनदेन और उद्योगपतियों द्वारा कर चोरी की होती है। इस प्रकार, चूंकि अवैध धनार्जन की प्रक्रिया में व्यवस्था से जुड़े सभी वर्ग का प्रतिनिधित्व होता है, अतः क्रोनिज्म के कारण किसी भी सरकारी एसआईटी अथवा कानून बनाकर इस समस्या का समाधान तलाशने की उम्मीद बेमानी है। करेंसी के डिमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण) से जाली नोटों की समस्या पर तो लगाम लगने की उम्मीद की जा सकती है लेकिन काले धन की समस्या का पूर्णतः समाधान हो जाएगा यह मान लेना सही नहीं होगा। देश ने कुछ वर्ष पूर्व इसके प्रमाण को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव भी किया है।

अब बारी आती है समस्या के कारण और समाधान की। चूंकि समस्या का सबसे बड़ा कारण आयकर की दर का बहुत अधिक होना और सरकारी कर्मियों को अपनी आय को बढ़ाने की छूट न होना है, इसलिए इसका समाधान आयकर की दर को अत्यंत कम करना या बिल्कुल समाप्त कर देना और लोगों को सरकारी नौकरी के इतर कार्य करने की अनुमति देना है। अब सवाल उठता है कि क) यदि आयकर को न्यूनतम स्तर पर लाया जाए या बिल्कुल समाप्त कर दिया जाए तो देश का खर्च कैसे चले और ख) सरकारी कर्मचारियों को अपने पेश के प्रति ईमानदार कैसे रखा जाए। इसका भी एक आसान समाधान है। दुनिया के कई ऐसे देश हैं जिन्होंने अनेकों कर लगाने की बजाए बीटीटी यानी की बैंक ट्रांजेक्शन टैक्स लगाने का विकल्प आजमाया है। बीटीटी का मतलब बैंक से की जाने वाले लेन देन की प्रक्रिया के दौरान ही कर लगाना है। साथ ही देश में 100 रूपए से ऊपर के मूल्य के नोट छापने बंद कर दिए जाए। इससे बड़ी धनराशि (अघोषित) का लेनदेन करने वालों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा और उन्हें बैंक का सहारा लेना पड़ेगा। छोटी धनराशि (अघोषित) के बाजार में घूमते रहने से भी अर्थव्यवस्था को लाभ ही होगा। इसी प्रकार, सरकारी कर्मचारियों की निष्ठा को टेक्नोलॉजी के प्रयोग जैसे कि कक्षा व अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे व बायोमैट्रिक हाजिरी लगाकर सुनिश्चित की जा सकती है। इसके अतिरिक्त लापरवाही की स्थिति में कड़ी व तत्काल की जाने वाली कार्रवाई भी कारगर साबित होती है। यह भी ध्यान रहे कि निजी क्षेत्र के अध्यापकों और चिकित्सकों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं होती फिर भी बाजार स्वयं उन्हें कार्य में लापरवाही बरतने की छूट नहीं देता। अध्यापक व चिकित्सक चाहें तो अपने बचे समय में से कुछ समय निकालकर प्रैक्टिस कर सकते हैं।

गैर आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर (दो लाख करोड़ रुपये) की धनराशि देश के बाहर के बैंकों में जमा है, जिस पर सरकार को कोई कर प्राप्त नहीं होता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान तमाम राजनैतिक दलों व संगठनों द्वारा यह मुद्दा उठाया गया था कि यदि सारा काला धन देश में आ जाए तो कौन कौन से चमत्कारिक कार्य हो सकते हैं। उदाहरण के लिए देश भर में पक्की सड़क, सबको अत्यंत कम दर पर बिजली, स्वच्छ पेयजल, स्कूल, अस्पताल, सस्ता पेट्रोल-डीजल, भारतीय रुपए के मूल्य का अमेरिकी डॉलर के बराबर हो जाना इत्यादि इत्यादि। लेकिन सरकार अथवा राजनैतिक दल इस बात पर विचार नहीं करते कि ऐसा तब भी हो सकता है जबकि सरकार की बजाए ये पैसा उसे जमा करने वाले लोग स्वयं ही देश में लेकर आ जाएं और अर्थव्यवस्था में निवेश कर दें। सोचिए, यदि उक्त सारा पैसा बाजार में निवेश किया जाए तो निवेशक किन किन क्षेत्रों में होगा। सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाले क्षेत्रों जैसे कि टोल युक्त हाईवे, गुणवत्ता युक्त स्कूल, अच्छे अस्पताल, परिवहन, रियल स्टेट इन्हीं क्षेत्रों में होगा। इसके अतिरिक्त इस विशाल धनराशि पर न्यूनतम कर आरोपित कर सरकार आसानी से देश की जरूरतमंद जनता को कुछ वास्तविक लाभ उपलब्ध करा पाएगी। इससे वह काला धन जो अनुपयोगी तरीके से देश के बाहर पड़ा हुआ है (ध्यान रहे कि जमाकर्ता को भी उसका लाभ नहीं मिल रहा) वह देश के विकास में ही प्रयुक्त हो सकेगा। इससे पहले से ही हांफ रही अर्थव्यवस्था को कुछ राहत अवश्य मिलने की उम्मीद सकेगी और रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ेंगी। सोचिए, क्या विदेशी निवेशकों को निवेश के लिए आकर्षित करने के लिए उन्हें प्रदान की जाने वाली सुविधाएं और मनचाही रियायतें नहीं दी जाती, फिर अपने देश के धन पर यदि कर ना लेने या कम कर लेने और जमाकर्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई न करने का आश्वासन क्यों नहीं दिया जा सकता? हमें समझना होगा कि कोविड उपरांत विश्व भर में जारी मंदी के अंदेशे के दौरान देश के भीतर या बाहर बेकार पड़े धन को अर्थव्यवस्था में वापस लाने का इससे बेहतर मौका नहीं मिलेगा।

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ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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