आठवे दशक में कई वर्षों तक भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रासंगिकता पर बहस होती रही। यह माना गया कि आजादी के बाद के शुरूआती वर्षों में निजी क्षेत्र के पास लोहा,इस्पात,भारी मशीनरी,मशीन टूल्स और रेलवे वैगन या बड़े बांध,बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण संयंत्र में निवेश करने के लिए संसाधन नहीं थे।केवल सरकार ही देश या विदेश से ऐसे संसाधन जुटा सकती थी। यही बात एयरलाइन्स ,एयरपोर्ट,और लक्जरी होटलों पर भी लागू होती थी। लेकिन 1980-81 में भारत की बचत दर 18.4 प्रतिशत तक पहुंच गई और उसकी विदेशी निवेश को आकर्षित करने की क्षमता भी बढ़ी।