बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार और कांग्रेस एक दूजे की ओर तक रहे हैं। चिदंबरम बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए मानकों में कुछ बदलाव करने का भरोसा दे चुके हैं, जिसकी मांग नीतीश लंबे समय से करते रहे हैं। 17 मार्च को नीतीश ने रामलीला मैदान में अपनी रैली में एक बार फिर यह मांग उठाई। नीतीश कुमार लोकसभा चुनावों में विशेष राज्य के दर्जे की उपलब्धि को भुनाना चाहते हैं। निश्चित रूप से वह इतने भोले नहीं हैं जो यह मानकर चल रहे हों कि यह दर्जा बिहार का कायाकल्प कर देगा और निकट भविष्य में बिहार आर्थिक पिछड़ेपन से उबर जाएगा।
वित्तीय घाटे का विचित्र इलाज सार्वजनिक इकाइयों के शेयर बेचकर सरकार अपना वित्तीय घाटा पूरा करना चाहती है। सरकार की आमदनी कम हो और खर्च ज्यादा हो तो अंतर को वित्तीय घाटा कहा जाता है। वर्तमान में वित्तीय घाटा तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि खाद्य पदार्थो, डीजल एवं फर्टिलाइजर पर दी जा रही सब्सिडी का बोझ बढ़ रहा है। चिदंबरम की सोच है कि सरकारी कंपनियों के शेयर बेचकर इस घाटे की भरपाई कर ली जाए। पेंच है कि पूंजी प्राप्ति का उपयोग चालू खर्च के पोषण के लिए किया जाना है। पूंजी प्राप्ति में जमीन, शेयर, मकान, मशीन आदि की बिक्री आती है। जैसे प्रिंटिंग प्रेस का मालिक या पूर्व में खरीदे गए
कई लोगों को यह पसंद नहीं है कि बजट को सुर्खियों में स्थान मिले! लेकिन मेरा मानना है कि राजनीति की खबरों के बीच अगर बजट के बहाने दो सप्ताह के लिए हमारा ध्यान देश की आर्थिक सेहत की ओर जाता है तो यह अच्छी बात है! वर्ष १९९१ से हम यही उम्मीद करते आए है की वित्त मंत्री का बजट भाषण देश की भावी अर्थव्यवस्था का दृष्टिकोण पेश करे !लेकिन ६ जुलाई २००९ को ऐसा नहीं हुआ! राष्ट्र नई सरकार से अगले पांच साल के लिए आर्थिक मिशन का इंतजार कर रहा था, लेकिन प्रणव मुखर्जी यह अवसर चूक गए!
अफवाह न फैले इसलिए सरकार ने एसएमएस की संख्या सीमित कर दी है तो क्या हमें सरकार को टैक्स देना बंद कर देना चाहिए क्योंकि इससे जनहित की बजाए भ्रष्टाचार फैल रहा है।