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उदारवादः मीनू मसानी
उदारवाद शब्द का मूल आज़ादी या स्वतंत्रता है। दूसरे शब्दों में यहां केंद्र बिंदू व्यक्ति है। समाज व्यक्ति की मदद के लिए है और न कि व्यक्ति समाज के लिए जैसा कि साम्यवाद या समाजवाद जैसी व्यवस्थाएं परिभाषित करने की कोशिश करती हैं। उदारवाद के मूल तत्व व्यापक हैं और जीवन के हर पहलू को छूते हैं। जहां तक मनोभाव की बात है तो सहनशीलता, खासतौर पर असहमति
गैर-समाजवादी विचारों और उदारवाद पर आधारित वैकल्पिक सामाजिक-आर्थिक नीति को लेकर जो प्रतिसाद मिला है, वह इस बात का सबूत है कि श्री लोतवाला जैसे उदारवादियों का उनमें यकीन कायम है। श्रीमती लोतवाला साम्यवादी नियंत्रण को रास आने वाले सामूहिकतावाद की दिशा में ले जाने वाले जीवन के तमाम क्षेत्रों में रूझानों और संस्कृति को जानती हैं। रूझानों का यह प्रवाह सोवियत संघ या चीन जैसे साम्यवादी और तथाकथित जनवादी लोकतांत्रिक देशों तक ही सीमित नहीं है। यह इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की लेबर पार्टी और स्वीडन, डेनमार्क जैसे
आधुनिक पूंजीवाद के सर्वाधिक पेचीदे विरोधाभास हैं घृणा, भय और अवमानना: जिसके साथ इसे आमतौर पर जोड़ कर देखा जाता है। समकालीन समाज की हर बुराई के लिए व्यवसाय, निजी लाभ के प्रयास और निजी स्वामित्व पर सीधे तौर पर आरोप मढ़ दिया जाता है। वे लोग जो बाजार के आलोचकों द्वारा डाले गए घृणा और अज्ञानता के आवरण को भेद डालते हैं, वे जाहिर तौर पर अपने आप से पूछेंगे कि इतना मूल्यवान सामाजिक संस्थान ऐसे सार्वभौमिक अवमानना और नापसंदगी का शिकार क्यों है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका अपने आप में एक वैज्ञानिक आकर्षण है। पर सवाल की महत्ता,
यह पुस्तक उन लोगों के लिए लिखी गयी है जो दुनिया के सबसे बड़े संवैधानिक लोकतंत्र के जागरूक नागरिक बनना चाहते हैं।
किसी देश के