इस पेज पर गुरचरण दास के लेख दिये गये हैं। उनके लेख विभिन्न भारतीय एवं विदेशी शीर्ष पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। इसके अलावा उन्होने कई बेस्टसेलर किताबें भी लिखी हैं।
रुचिका गिरहोत्रा की मौत व्यर्थ नहीं गई है। उसने नए और निश्चयी भारत की नैतिक कल्पनाओं को ऊर्जावान किया है और उस विश्वास का खंडन किया है कि हमारा मध्यम वर्ग पूरी तरह से आत्मकेंद्रित, उपभोक्तावादी और कठोर है। उन्नीस साल पहले हुई एक घटना आज बेचैन आक्रोश का स्रोत बन गई है। कहा जा सकता है कि हमारे देश में धर्म गिरने के बजाय
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक को दो रुझान परिभाषित करते हैं। एक, अच्छा रुझान और दूसरा, खराब रुझान। अच्छा रुझान यह है कि उच्च आर्थिक विकास दर के फलस्वरूप समृद्धि का फैलाव होने लगा है। दूसरा रुझान भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी का है। कुछ लोग तुरंत दोनों रुझानों का संबंध जोड़ देंगे, लेकिन दरअसल दोनों अलग-अलग हैं। उच्च विकास दर आर्थिक सुधारों की
गुरचरण दास
इस पेज पर गुरचरण दास के लेख दिये गये हैं। उनके लेख विभिन्न भारतीय एवं विदेशी शीर्ष पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। इसके अलावा उन्होने कई बेस्टसेलर किताबें भी लिखी हैं।पुरा लेख पढ़ने के लिये उसके शीर्षक पर क्लिक करें।
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