डेली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़े प्रसिद्ध अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में प्रोफेसर हैं. वे इंटरनैशनल मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में भी पढ़ाते हैं और अनेकों पुस्तक, पेपर व कॉलम लिख चुके हैं.
वर्ल्ड बैंक ने सोमवार को इज ऑफ डूइंग बिजनेस यानी व्यापार सुगमता सूचकांक पर रिपोर्ट जारी की़। रिपोर्ट के मुताबिक उद्योग-व्यवसाय के लिहाज से सुगमता वाले राज्यों की सूची में गुजरात शीर्ष पर है, जबकि आंध्र प्रदेश दूसरे स्थान पर, झारखंड तीसरे, तो छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर है़। यानी इन राज्यों में उद्योग-व्यवसाय लगाना-चलाना सबसे आसान है। रिपोर्ट में प बंगाल को 11 वां, तो बिहार को 21 वां स्थान मिला है़ इज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में दिल्ली, पंजाब, केरल और गोवा फिसड्डी साबित हुए हैं।
रेलवे में सुधारों के लिए अर्थशास्त्री डा. बिबेक देबरॉय की अध्यक्षता में गठित 6 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति ने 12 जून 2015 को अपनी रिपोर्ट रेलवे मंत्रालय को सौंप दी। पेश रिपोर्ट में रेलवे की हालत सुधारने के लिए निजी क्षेत्र के योगदान की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। रिपोर्ट में प्राइवेट सेक्टर को यात्री ट्रेन और मालगाड़ी चलाने की अनुमति देने की सलाह दी गई है और कहा गया है कि रेलवे को अपना काम नीतियां बनाने तक सीमित रखना चाहिए। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे बोर्ड की भूमिका सीमित करने, मानव
असमानता को लेकर हमें अपना नजरिया साफ करने और पाखंड से दूर रहने की जरूरत है। गरीबी एक निरपेक्ष धारणा है, जबकि असमानता सापेक्ष। गरीबी को घटाना वांछनीय है। लेकिन असमानता में कमी लाना एक स्वयंसिद्ध उद्देश्य नहीं है। ऐसी धारणा है कि बढ़ती असमानता, चाहे वह असल हो या काल्पनिक, बुरी होती है।
बीते साल शंकर आचार्य और राकेश मोहन ने मोंटेक सिंह अहलूवालिया के सम्मान में एक पुस्तक का संपादन किया था। इस किताब में स्वर्गीय सुरेश तेंदुलकर का असमानता पर एक लेख था। इस लेख में बैंकाक में हुए एक सम्मेलन के बेहद
बिबेक देबरॉय
डेली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़े प्रसिद्ध अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में प्रोफेसर हैं. वे इंटरनैशनल मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में भी पढ़ाते हैं और अनेकों पुस्तक, पेपर व कॉलम लिख चुके हैं.पुरा लेख पढ़ने के लिये उसके शीर्षक पर क्लिक करें।
अधिक जानकारी के लिये देखें: http://www.cprindia.org/profile/bibek-debroy
असमानता को लेकर हमें अपना नजरिया साफ करने और पाखंड से दूर रहने की जरूरत है। गरीबी एक निरपेक्ष धारणा है, जबकि असमानता सापेक्ष। गरीबी को घटाना वांछनीय है। लेकिन असमानता में कमी लाना एक स्वयंसिद्ध उद्देश्य नहीं है। ऐसी धारणा है कि बढ़ती असमानता, चाहे वह असल हो या काल्पनिक, बुरी होती है।
बीते साल शंकर आचार्य और राकेश मोहन ने मोंटेक सिंह अहलूवालिया के सम्मान में एक पुस्तक का संपादन किया था। इस किताब में स्वर्गीय सुरेश तेंदुलकर का असमानता पर एक लेख था। इस लेख में बैंकाक में हुए एक सम्मेलन के बेहद
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